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कारक किसे कहते हैं |
कारक को इंग्लिश में 'Case' कहते हैं संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का
वाक्य की क्रिया(काम) के साथ संबंध प्रकट करने वाले या
जोड़ने का काम करने वाले कारक कहलाते हैं। संज्ञा अथवा सर्वनाम के
आगे जब 'ने, को, से' आदि विभक्तियां लगती है तब उनका रूप ही
कारक कहलाता है इन 'ने, को,
से' आदि विभक्तियों से ही संज्ञा या
सर्वनाम वाक्य के अन्य शब्दों से संबंध रख पाते हैं
उदाहरण के रूप में -
श्याम ने महेश से पैसे लाने को कहा
था।
इस वाक्य में 'श्याम
ने' 'महेश से' संज्ञाओं के रूपांतर है जिनके द्वारा इन संज्ञाओं का संबंध 'लाने को कहा' क्रिया के साथ
बन गया।
इसे भी पढ़े : समास और उसके भेद, विशेषण और उसके भेद उदाहरण सहित , संधि और उसके भेद , अलंकार और उसके भेद
कारक कितने प्रकार के होते हैं? (कारक चिन्ह )
हिंदी में कारक के आठ भेद या प्रकार होते हैं।
कारक
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विभक्तियां
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कर्ता
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0, ने
|
कर्म ।
|
0, को
|
करण।
|
से
|
संप्रदान।
|
को, के लिए
|
अपादान।
|
से
|
सम्बन्ध
|
को, के, की, रा, रे, री
|
अधिकरण
|
में, पर
|
सम्बोधन।
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0,हे, अजी, अहो, अरे
|
'0' का अर्थ होता है कि कभी-कभी कर्ता, कर्म, सम्बोधन
कारक में ऐसा देखने को मिलता है कि उसमें विभक्ति
चिह्न का लोप होता है; जैसे - राम खाता है।
इस वाक्य में विभक्ति चिन्ह (ने) छिपा हुआ है। अगर पूछा जाए
की इस वाक्य में कौन सा कारक है तो इसका उत्तर कर्ता कारक होगा क्योंकि इसमें 'ने' का लोप हुआ है और 'ने'
कर्ता कारक का विभक्ति है।
ठीक इसी प्रकार शिकारी
ने बाघ मारा।
इस वाक्य में कौन सा कारक है पूछा जाए तो इसका सटीक उत्तर
होगा कर्म कारक क्योंकि इसमें कर्म कारक की विभक्ति(को) छिपा हुआ है।
इससे यह प्रमाणित हो जाता है कि प्रत्यय या अप्रत्यय के
बिना भी वाक्य होता है और उसमें प्रत्यय या अप्रत्यय या विभक्ति छिपा हुआ रहता है।
1. कर्ता कारक
किसी भी वाक्य में जो शब्द काम करने वाले के अर्थ में
प्रयोग होता है उसे कर्ता कहते हैं और जिस शब्द से क्रिया करने वाले का पता चलता
है उसे कर्ता कारक कहते हैं जैसे
·
कामेश ने चॉकलेट खाई।
·
सीता खूब नाची।
इन वाक्यों में ' कामेश
और सीता ' कर्ता है कई बार कर्ता के साथ ने का प्रयोग नहीं होता जैसे दूसरे वाक्य
में नहीं हुआ है।
'ने' का प्रयोग कहां होता है?
⇛ ने का प्रयोग कर्ता के
साथ तभी होता है जब क्रिया सकर्मक तथा सामान्यभूत, आसन्नभूत, पूर्णभूत, हेतु-हेतुमद्भूत
और सन्दिग्ध भूत कालो की और कृर्तृवाच्य की हो। जैसे
सामान्यभूत - मोहन
ने रोटी खायी।
पूर्णभूत - मोहन ने रोटी खायी थी।
आसन्नभूत - मोहन ने रोटी खायी है।
संदिग्ध भूत - मोहन ने रोटी खायी होगी।
हेतु-हेतुमद्भूत - मोहन में ने मेहनत की होती तो उत्तीर्ण
हुआ होता ।
⇛ जब अकर्मक क्रिया
साकार मा सकर्मक क्रिया के भाव में प्रयोग की जाएं
तो वहां भी ने का प्रयोग किया जाता है। जैसे
उसने टेढ़ी चाल चली
उसने लड़ाई लड़ी।
⇛ सामान्यता आकार मत आकार मत अकर्मक प्रिया क्रिया में ने विभक्ति नहीं लगती
किंतु कुछ ऐसी अकर्मक क्रियाएं हैं जैसे नहाना, छींकना,
थूकना, खांसना, - जिनमें
ने चिह्न का प्रयोग अपवाद स्वरूप होता है। इन क्रियाओं के बाद कर्म नहींं आता।
जैसे :-
उसने थूका ।
राम ने छींका ।
उसने खांसा ।
उसने नहाया ।
⇛ प्रेरणार्थक क्रियाओं के साथ आप पूर्ण भूत को छोड़ शेष सभी भूत का लो मेंं ने
का प्रयोग होता है जैसे :-
मैंने उससे पढ़ाया।
उसने कुछ रुपया दिलवाया।
'ने' का प्रयोग कहां नहीं होता?
⇛ सकर्मक क्रियाओं के कर्ता के साथ भविष्य काल में ने का प्रयोग बिल्कुल
नहीं होता।
⇛ यदि संयुक्त क्रिया का अंतिम खंड अकर्मक हो, तो उसमें ने का प्रयोग नहीं होता है जैसे :-
मैं खा चुका होउंगा।
वह पुस्तक ले आया ।
⇛ जिन वाक्यों में लगना, जाना,
सकना तथा चुकना सहायक क्रियाएं आती है उनमेंं ने का
प्रयोग नहीं होता है जैसे :-
वह खा चुका।
मैं पानी पीने लगा।
उसे दिल्ली जाना है।
⇛ बकना, बोलना, भूलना, क्रियाओं के साथ ने का प्रयोग नहीं होता है।
2. कर्म कारक
वाक्यों में क्रिया का फल कर्ता पर न पकड़ कर अन्य जिस
संज्ञा शब्द पर पड़ता है उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म कारक विभक्ति 'को' है; जैसे-
·
डॉक्टर ने रोगी को जांचा।
·
अभिषेक ने अपनी बहन अमीषा को समझाया।
इन वाक्यों में रोगी और अमीषा कर्म कारक है इन वाक्यों मे
क्रिया का फल कर्म पर पड़ता है क्रिया के साथ कहां, किसे आदि प्रश्न
करने पर उत्तर में जो संज्ञा शब्द आता है वह कर्म होता है।
बिना प्रत्यय के या अप्रत्यय कर्म कारक का भी प्रयोग होता है इसके भी
निश्चित नियम बनाए गए है -
1.
सुलाना, कोसना, पुकारना, जगाना,
भगाना, खिलाना, नहलाना इत्यादि क्रियाओं के कर्मों के साथ को विभक्ति लगती है जैसे
·
मैंने मोहन को बुलाया।
·
सीता ने राम को फल
खिलाया।
·
शीला ने सावित्री को
जी भर कोसा।
·
कवि ने रमेश को
पुकारा।
·
लोगों ने उस पागल को
नहलाया।
2. 'मारना' क्रिया
का अर्थ जब होता है जब पीटना
या जान से नहीं मारना होता है तब कर्म के साथ विभक्ति लगती है पर यदि उसका
अर्थ शिकार करना या जान से मार देना होता है तब उसमें विभक्ति चिह्न नहीं लगती है अर्थात कर्म अप्रत्यय रहता है या छिपा हुआ रहता है। जैसे
·
लोगों ने उस चोर को
बहुत मारा।
·
शिकारी ने हिरण मारा।
इन दोनों वाक्यों में कर्म कारक है एक में कर्म कारक की
विभक्ति दिखाई पड़ रही है और दूसरे वाक्य में कर्म कारक की विभक्ति का लोप हो गया
है।
3. जब कर्म निर्जीव वस्तु हो तब 'को' का प्रयोग नहीं होना चाहिए जैसे राम ने रोटी को
खाया की अपेक्षा 'राम ने रोटी खायी' ज्यादा अच्छा है।
3. करण कारक
वाक्य में जिस शब्द से क्रिया के संबंध का बोध हो उसे करण
कारक कहते हैं। करण कारक के सबसे अधिक प्रत्येक चिन्ह हैं।
करण कारक के
चिन्ह है- से, द्वारा, के द्वारा, के जरिए, के साथ,
के बिना इत्यादि। इन चिन्ह में
अधिकतर प्रयोग में लाए जाने वाले चीह्न है - 'से,
द्वारा, के द्वारा, के
जरिए' इत्यादि।
करण का अर्थ है 'साधन'। अच्छा अतः
से चिन्ह ही करण कारक का चिन्ह है या यह साधन के अर्थ में प्रयुक्त हो जैसे-
मुझसे यह खाना ना खाया जाएगा।
यहां मुझसे का अर्थ है मेरे द्वारा। अतः साधन को इंगित करने
के कारण यहां मुझसे का से करण कारक का विभक्ति चिह्न है।
1. 'से' करण और अपादान
दोनों विभक्तिओं का चिन्ह है किंतु साधनभूत का प्रत्यय होने पर करण माना जाएगा
जबकि अलग होने का प्रत्यय होने पर अपादान कारक होगा । जैसे-
मुझे अपनी मेहनत से खाना मिलता है। (करण कारक)
पेड़ से फल गिरा (अपादन कारक)
2. भूख प्यास जाड़ा आंख कान पाव इत्यादि शब्द
यदि एक वचन करण कारक में संप्रत्यय रहते हैं तो एकवचन होता है और अप्रत्यय होता है
तो बहुवचन होता है जैसे -
वह भूख से मार रहा है। (एकवचन)
वह भूखों मर रहा है। (बहुवचन)
मैंने अपनी आंख से यह घटना देखें। (एकवचन)
मैंने अपनी आंखों वह घटना देखें। (बहुवचन)
4. संप्रदान कारक
कर्ता जिसके लिए काम करता है या जिसे कुछ देता है, उसे संपादन कारक कहते हैं इसका विभक्ति चिन्ह को, के लिए है। जैसे
पिता जी अभिषेक के
लिए खिलौने लाए।
राशिद रमेश को कुछ रुपए देता है।
1. कर्म और संपादन का एक ही विभक्ति प्रत्यय
है 'को' पर दोनों के अर्थों में अंतर
है संप्रदान का 'को', 'के लिए' अव्यय के स्थान पर या उसके अर्थ में प्रयुक्त होता है जबकि कर्म के को का
के लिए अर्थ से कोई संबंध नहीं है जैसे-
हरि मोहन को मारता है (कर्म कारक)
हरि मोहन को खाने के लिए कुछ देता है (संप्रदान कारक)
2. साधारणतः जिसे कुछ दिया जाता है या जिसके
लिए कोई काम किया जाता है वह पद संपादन कारक होता है जैसे भूखों को अन्न देना
चाहिए और प्यासे को जल।
3. के हित के वास्ते के नियम के निमित्त आदि
प्रत्यय वाले अव्यय भी संप्रदान कारक के प्रत्यय हैं जैसे राम के हित लक्ष्मण वन
गए थे।
5. अपादान कारक
संज्ञा के जिस रूप से तुलना करने या अलग होने का पता चलता
है उसे अपादन कारक कहते हैं इस कारक का विभक्ति चिह्न 'से' है जैसे :-
प्रधानमंत्री मंच से उतरे।
जया रेखा से छोटी है।
पेड़ से फल गिरते हैं।
वह घर से बाहर आया।
इन वाक्यों में प्रधानमंत्री,
रेखा, पेड़, घर अपादान कारक है। इनसे अलग होने और तुलना करने का पता चलता है।
6. संबंध कारक
वाक्यों में आए दो संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का संबंध का
जिससे पता चलता है उसे संबंध कारक कहते हैं
या
संज्ञा या सर्वनाम कि जिस रूप से किसी अन्य शब्द के साथ
संबंध या लगाओ प्रत्येक हो उसे संबंध कारक कहते हैं। संबंध कारक की विभक्तियां का, के, की,
रा, रे, री इत्यादि है जैसे
अजय की मौसी द्वारका गई।
सुधा की बेटी गाएगी।
इन वाक्यों में अजय और मौसी तथा सुधा और बेटी के संबंध का पता चलता है ये संबंध
कारक है।
१. संबंध कारक का विभक्ति चिन्ह का है इस कारक से अधिकार, कार्य-कारण, मोल-भाव, परिमाण इत्यादि का बोध होता है जैसे
अधिकार - राम की किताब, श्याम का घर।
कार्य कारण - चांदी की थाली, सोने का गहना,
तांबे का बर्तन।
मोल भाव - चार रुपए के चना, दस
रुपये के नमक।
परिमाण - सौ मील की दूरी, पांच कदम की दूरी,
दो हाथ की लाठी।
२. संबंध कारक की विभक्ति ओं द्वारा मुहावरे धार प्रयोग भी
होते हैं जैसे दिन के दिन, महीने के महीने, शाम
के साथ, बात का पक्का, अब सुरेश बचने
का नहीं इत्यादि।
३. संबंध अधिकार और देने के अर्थ में बहुदा संबंध कारक की
विभक्ति का प्रयोग होता है जैसे
राम को संतान नहीं है।
राजा के आंखें नहीं होती, केवल कान होते हैं।
४. सर्वनाम की स्थिति में संबंध कारक का प्रत्यय रे री रा
और ना, ने, नी हो जाता है
जैसे मेरा थैला, मेरी बकरी, तुम्हारा
पैसा, तुम्हारी लाठी, अपना भाई,
अपना घर।
7.अधिकरण कारक
संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के आधार, समय, मूल्य, तुलना,
अवस्था, भाव, काल और
स्थान आदि का पता चलता है वहां अधिकरण कारक होता हैं जैसे:
राम भैंस पर बैठा है।
शरबत में चीनी डालो।
इन वाक्यों में भैंस और शरबत अधिकरण कारक है अधिकरण कारक की
विभक्ति चिन्ह में और पर है।
१. कभी-कभी में के अर्थ में 'पर' और पर के अर्थ में 'में'
का प्रयोग होता है; जैसे
तुम्हारे घर पर कुछ आदमी है। (घर में)
नाव जल में तैरती है (जल पर)
२. कभी-कभी यह भी देखने को मिलता है कि अधिकरण कारक की विभक्तियों का लोप भी हो जाता
है। जैसे:
इन दिनों वह आगे हैं
बच्चे दरवाजे-दरवाजे शोर मचा रहे हैं।
8. संबोधन कारक
जिन संज्ञा शब्दों का प्रयोग संबोधन के लिए किया जाता है
उन्हें संबोधन कारक कहते हैं या फिर संज्ञा के जिस रूप से किसी के पुकारने या
संकेत करने का भाव पाया जाता है उसे संबोधन कारक कहते हैं जैसे
हे राम! अब तो चुप कर जा।
अरी रेशमा! आइसक्रीम तो खिला दे।
हे भगवान! मेरी रक्षा कीजिए।
इन वाक्यों में 'हे
भगवान, हे राम, अरे रेशमा' से पुकारने का बोध होता है संबोधन कारक की कोई भी व्यक्ति
नहीं होती है इससे प्रकट करने के लिए हे, अरे, रे, रा, री आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
कर्म कारक और संप्रदान कारक में
क्या अंतर है?
कर्म कारक और संपादन कारक दोनों के विभक्ति चिह्न 'को' है पर दोनों के अर्थों में अंतर हैं
जहां वाक्य में क्रिया का फल जिस शब्द पर पड़ता है वहां कर्म कारक होता है। तथा
जिस वाक्य से कर्ता के काम करने या कुछ देने का भाव प्रकट होता है वहां संप्रदान
कारक होता है जैसे:-
डॉक्टर ने रोगी को जांचा।
इस वाक्य में डॉक्टर के द्वारा रोगी को जांचने या देखने का
भाव प्रकट हो रहा है यहां कर्ता पर क्रिया का फल या प्रभाव नहीं पड़ कर रोगी पर
पड़ रहा है इसलिए इस वाक्य में कर्म कारक है।
मोहन सोहन के लिए कुछ कपड़े लाएं।
इस वाक्य में मोहन के द्वारा सोहन के लिए कुछ कपड़े देने की
बात कहीं गई है जिस कारण इस वाक्य में संप्रदान कारक है।
करण कारक और अपादान कारक में अंतर
जिस वाक्य से संज्ञा सर्वनाम या विशेषण के जिस रुप से
क्रिया के संबंध का बोध होता है वहां करण कारक होता है जैसे
बालक कलम से लिखता है।
इस वाक्य में बालक का संबंध कलम से हैं।
जबकी संज्ञा या सर्वनाम के जिस शब्द में किसी वस्तु का अलग
होने का बोध होता है तो वहां अपादन कारक होता है जैसे
बिल्ली छत से कूद पड़ी।
इस वाक्य में बिल्ली छत से अलग होने का भाव प्रकट होता है
इसलिए यहां अपादन कारक है।
दोस्तों आज हम इस पोस्ट में कारक किसे कहते हैं(karak kise kahate Hain) कारक
के कितने भेद होते हैं कारक की विभक्ति चिन्ह कौन-कौन हैं साथ ही कर्म कारक और
संप्रदान कारक में क्या अंतर है इन सभी प्रश्नों का उत्तर हमने इस पोस्ट में पढ़ा।
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