सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) क्या है ?

 

सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) क्या है ?

सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) क्या है ?

सूक्ष्म शिक्षण क्या है? इसे हम उदाहरण से समझने का प्रयास करेंगे।  दो शब्दों से मिलकर बना है पहला सूक्ष्म तथा दूसरा शिक्षण। सूक्ष्म से तात्पर्य छोटे (गहन) तथा शिक्षण से तात्पर्य है प्रशिक्षण के दौरान दिए जाने वाले कक्षा में शिक्षण या प्रशिक्षण देना। सूक्ष्म शिक्षण कक्षा में दिये जाने वाला एक नयी प्रशिक्षण प्रणाली है। इस प्रणाली से कम समय  में अधिक लाभान्वित हुआ जा सकता है यह शिक्षक प्रशिक्षण की एक तकनीक है जिसमें प्रशिक्षणार्थी अर्थात् छात्र अध्यापक या छात्रा अध्यापिका एक विषय इकाई को एक कौशल का प्रयोग करके छात्रों की एक छोटी सी संख्या को एक निश्चित समय या अवधि तक पढ़ाता है। जन छात्र अध्यापक दिये गए समय के अंतराल में पढ़ा लेता है। तब पर्यवेक्षक द्व्रारा उसे प्रतिपुष्टी  या फ़ीडबेक दी जाती है। इसी आधार पर छात्र अध्यापक पुनः पाठ योजना बनाता है तथा उसी तथ्य को पुनः पढ़ाता  है पहली बार में वे त्रुटियाँ नहीं होती । दूसरी बार भी शिक्षण के बाद उसे प्रतिपुष्टी दी जाती है। अगर जरूरत पड़ी तो उसे तीसरी बार भी वही पाठ पढ़ने को कहा जाता है। यह प्रक्रिया तब तक चलता है जब तक की पर्यवेक्षक को पूरी तरह से पुष्टि न हो जाए कि छात्र अध्यापक शिक्षण के लिए तैयार है।  सूक्ष्म शिक्षण कक्षा की कोई विधि नहीं बल्कि शिक्षण प्रशिक्षण की एक प्रयोगात्मक विधि है ।

                                 युध्द में जाने से पूर्व या अस्पताल में वास्तविक ऑपरेशन करने से पूर्व किसी भी नव सीखी को उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ती है। ठीक उसी प्रकार जब कोई शिक्षक बनने की ठान लेता है तो उसे विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण से हो कर गुजरना पड़ता है। सूक्ष्म शिक्षण का तात्पर्य कक्षा का आकार , कलांश एवं पाठयसामग्री में नवीनीकरण करके उपयुक्त कौशलों का शिक्षक के अंतगर्त विकास करके उसके शिक्षण व्यवहार का परिमार्जन करना है।

इसे भी पढ़िए सूक्ष्म शिक्षण के गुण एवं दोष

सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ : –

      माइक्रो का अर्थ होता हैसूक्ष्म वस्तु जिन्हें सूक्ष्मदर्शी यंत्रों से देख सकते हैं। परंतु यहाँ सुक्ष्म का अर्थ होता है छोटेछोटे बातों परगहनता से विचार करना। सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ हुआ कि कोई शिक्षक शिक्षण के पक्ष में गहराई से चला जाय और कुशलता अर्जित कर ले। हम सभी जानते है कि अध्यापक पैदा नहीं होते बल्कि बनाए जाते हैं। अतः शिक्षक को कुशल बनाने के लिए प्रशिक्षण देना आवश्यक है तभी शिक्षक प्रशिक्षक कार्यक्रम पूर्ण विकसित हो पाएगा। वैज्ञानिक विकसित होते जा रहा है। संचार साधनों का भी तेजी से विकास हो रहा है नये नये तकनिकों का भी आविष्कार होते जा रहे हैं। इस लिए शिक्षाविदों ने भी शिक्षक प्रशिक्षण के नये आयामों का विकास कर लिया है। प्रशिक्षण के सैध्दांतिक पक्ष और व्यवहारिक पक्षों में समन्वय का प्रयास किया जा रहा है। इसी तरह सूक्ष्म शिक्षण का विकास हुआ।    

सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा(definition of micro teaching) :-

ऐलेन के अनुसार :-  “सूक्ष्म शिक्षण से तात्पर्य शिक्षण क्रिया के लघु रूप से है, जिसे थोड़े विद्यार्थियों वाली कक्षा के सामने अल्प समय में सम्पन्न किया जाता है।”

एन॰ पापाराव के अनुसार :- “ सूक्ष्म शिक्षण कम समय कम छात्र  एवं कम
शिक्षण क्रियाओं वाली प्रविधि है जिसमें छात्र को विशिष्ट कौशल का अभ्यास कराया
जाता है।”

वी॰ के पासी के अनुसार :- “सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण विधि है जिसमें छात्र अध्यापक किसी एक शिक्षण कौशल का प्रयोग करते हुए थोड़े अवधि के लिए छोटे समूह को एक पेयकर्ण पढ़ाता है।”

सूक्ष्म शिक्षण की प्रकृति या विशेषताएँ (characteristics of micro teaching):-

1. यह एक प्रशिक्षण तकनीकी है। इसे किसी भी अवस्था में शिक्षण तकनीकी नहीं समझना चाहिए।

2. इसे शिक्षकों को शिक्षण कौशलों का अभ्यास कराने के लिए अपनाया गया है।

3. यह शिक्षण का बहुत लघु तथा सरल रूप है, जिसमें शिक्षण की जटिल समस्याओं को कम कराने का प्रयास किया जाता है।

4. शिक्षण कार्य में बहुत से विशेष कौशल होते है । यह एक ऐसी तकनीक है जो इन कौशलों में अच्छी तरह शिक्षण कार्य को सफल बना सकती है।

5. इस विधि में शिक्षण की परिस्थितियों पर अधिक नियंत्रण रखा जा सकता है।

6. पृष्ट पोषण के आधार पर विद्यार्थियों को अपना पाठ पुनः नियोजित करने तथा उसमें सुधार का अवसर मिल जाता है।

7. अध्यापकों के लिए यह विधि समय की दृष्टि से लाभकारी सिध्द होती है।

8. सूक्ष्म अध्यापन में छात्र अध्यापक 5 से 10 छात्रों की कक्षा में अध्यापन करता है।

9. छात्र या तो वास्तविक होते है या सहपाठी से ही उनकी भूमिका का निर्वाह कराया जाता है।

10. सूक्ष्म पाठ 5 -10 मिनट तक होता है ।

11. शिक्षण के बाद छात्र अध्यापक या प्राध्यापक को निरीक्षक या पर्यवेक्षक प्रतिपुष्टी देता है। जिससे छात्र अध्यापक कौशल विकास में सहायता पाता है।

12. वह पुनर्योजना करके उन्हीं छात्रों को विषय बदलकर लेकिन उसी कौशल पर आधारित अन्य छात्रों को वही पाठ उसी अवधि में पुनः पढ़ाता है।

सूक्ष्म शिक्षण के अंग या तत्व :-

सूक्ष्म शिक्षण के अंग निम्नलिखित है –

1. अध्यापक

2. छात्र समूह ( 4 या 5)

3. पाठ्यक्रम की एक एक छोटी इकाई

4. विशिष्ट सूक्ष्म शिक्षण के उद्देश्य

5. निरीक्षण के द्वारा, ऑडियो टेप रिकॉर्डडर या वीडियो रिकॉर्डडर और सी॰सी॰टी॰वी॰ के उपयोग द्वारा की प्रतिपुष्टि।

 

                         सूक्ष्म शिक्षण के सोपान या सूक्ष्म शिक्षण चक्र :-

सूक्ष्म शिक्षण के सोपान या सूक्ष्म शिक्षण चक्र निम्नलिखित है –

1. सूक्ष्म शिक्षण के बारे सैध्दांतिक ज्ञान देना :- प्रारंभ में छात्राध्यापक को सूक्ष्म शिक्षण संबंधी आवश्यकता सैध्दांतिक जानकारी की दृष्टि से बातें बतायी जानी चाहिए।

a. सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं संप्रत्यय।

b. सूक्ष्म शिक्षण का महत्व अथवा उपयोग ।

c. सूक्ष्म शिक्षण की कार्य पध्दति।

d. सूक्ष्म शिक्षण तकनीकी को अपनाने के लिए आवश्यक परिस्थितियां एवं साधन ।

2. सूक्ष्म कौशलों की चर्चा :- इस योगना मेन छात्र अध्यापक की भिन्न भिन्न शिक्षण कौशलों से परिचित कराया जाता है ।

a. शिक्षण कार्य मेन शिक्षण कौशलों का उपयोग तथा महत्व।

b. अध्यापक के व्यवहार संबंधी घटकों की चर्चा।

3. किसी विशिष्ट कौशल का चयन :- इस विधि मेन एक समय में एक कौशल का ही अभ्यास कराया जाता है। अतः छात्र अध्यापकों को अभ्यास कराने के लिए किसी एक कौशल का चुनाव कर लिया जाता है और उसके विषय में व्यापक जानकारी दी जाती है। 

4. आदर्श पाठ प्रदर्शन या प्रस्तुतीकरण :- चुने हुए शिक्षण कौशल की पूरी जानकारी के बाद आदर्श पाठ छात्र अध्यापक के सामने प्रस्तुत किया जाता है। इस आदर्श पाठ को विभिन्न विधियों द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है-

a. सूक्ष्म शिक्षण के आदर्श पाठ की विस्तृत लिखित योगना छात्र अध्यापकों को दी जा सकती है।

b. उस विडियो टेप पर रिकॉर्ड करके फिल्म के रूप में दिखाया जा सकता है।

c. उसे टेप रिकॉर्डर पर रिकॉर्ड करके छात्र अध्यापकों को सुनाया जा सकता है।

d. किसी विशेषज्ञ अथवा शिक्षक प्रशिक्षक के द्वारा वास्तविक रूप में इस पाठ को पढ़ा कर दिखाया जा सकता है।  

5. आदर्श पाठ का निरीक्षण एवं समालोचना :- आदर्श पाठ जिस रूप में भी विद्यार्थियों द्वारा देखा सुना अथवा पढ़ा जाता है। उसका उनके द्वारा सावधानी से विश्लेषण किया जाता है। पर्यवेक्षण करने से संबंधित निरीक्षण अनुसूची अथवा प्रपत्र (ओवजरवेशन रोड्यूल) भी उन्हें पहले ही वितरित कर दिए जाते है और इन प्रपत्र की समुचित प्रगोग विधि भी उन्हें समझा दी जाती है।

6. सूक्ष्म पाठ योजना तैयार करना :- इस सोपान के अंतर्गत छात्र अध्यापक संबंधित शिक्षण  कौशल का अभ्यास करने के लिए किसी उचित उप विषय का चुनाव करके एक आदर्श पाठ योजना तैयार करे है। इसके लिए वे अपने अध्यापकों से परामर्श भी लें सकते हैं। और शिक्षण प्रशिक्षण पर उपलब्ध सामग्री और पुस्तकों का अध्ययन भी कर सकते हैं।

7. उचित परिस्थितियों का आयोजन :- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने भारतीय परिवेश के संदर्भ मेन निम्नलिखित प्रारूप सुझाया है –

a. छात्रों को संख्या 5 -10

b. छात्र वास्तविक या सहपाठी

c. पर्यवेक्षण कर्ता शिक्षण प्रशिक्षण और सहपाठी

d. सूक्ष्म पाठ की आवधि 6 मिनट

e. सूक्ष्म शिक्षण चक्र की अवधि 36 मिनट।

           इस अवधि का विभाजन इस प्रकार से किया जाता है 

शिक्षण सत्र      —-     6 मिनट

प्रतिपुष्टी सत्र    —-     6 मिनट

पुनः योजना    —-     12 मिनट

पुनः अध्यापन सत्र      6 मिनट

पुनः प्रतिपुष्टी सत्र       6 मिनट

____________________________

                                                          कुल समय            36 मिनट

 

8. शिक्षण अभ्यास या शिक्षण सत्र  इस सोपान के अंतर्गत छात्र अध्यापक 5 -10 विद्यार्थियों अथवा सहपाठी छात्र अध्यापकों की कक्षा में अपने द्वारा तैयार सूक्ष्म पाठ को 5 या 6 मिनट तक पढ़ाता है।  

9. प्रतिपुष्टि प्रदान करना :- सूक्ष्म शिक्षण की सबसे अधिक उपयोगिता उसके इस गुण में हैं कि इसके द्वारा एक अध्यापक को अपने पढ़ाए हुए पाठ के विषय में तत्काल प्रतिपुष्टि प्राप्त हो सकती है।

10. पुनः पाठ योजना बनाना :- विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त प्रतिपुष्टि के आधार पर छात्र-अध्यापक अपने सूक्ष्म शिक्षण पाठ कि पुनः योजना बनाता है। इस कार्य के लिए 12 मिनट समय मिलता है।

 11. पुनः अध्यापन सत्र :- 6 मिनट के सत्र में पुनः निर्मित पाठ योजना के आधार पर पुनः व्यस्थित शिक्षण परिस्थितियों में छात्र-अध्यापक अपने सूक्ष्म शिक्षण पाठ को एक बार फिर पढ़ाता है।

12. पुनः प्रतिपुष्टि प्रदान करना :- पुनः पढ़ाये गए पाठ का शिक्षण प्रशिक्षण और सहयोगी छात्र अध्यापकों द्वारा एक बार फिर पर्यवेक्षण किया जाता है और परिणाम स्वरूप उनके द्वारा आवश्यक प्रतिपुष्टि प्रदान कि जाती है। यह सत्र 6 मिनट का होता है।

13. सूक्ष्म शिक्षण चक्र कि पुनरावृति – किसी शिक्षण कौशल का अभ्यास करने के लिए प्रयुक्त सूक्ष्म शिक्षण चक्र में योजना बनाने से लेकर पढ़ाने तक की प्रतिपुष्टि प्रदान करने पुनः योजना बनाने पुनः निरीक्षण करने और पुनः प्रतिपुष्टि प्रदान करने आधी से संबंधित विभिन्न कार्यों का समावेश होता है। इस आपसी संबंध को निम्न चित्र द्वारा समझा जा सकता है –

सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) क्या है ?
सूक्ष्म शिक्षण के सोपान या सूक्ष्म शिक्षण चक्र

 

सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) के तत्व और सोपान के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें –

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