मध्यमान क्या है (Mean in hindi) – मध्यमान की विशेषता,मध्यमान के लाभ,मध्यमान के दोष

मध्यमान क्या  है (Mean in hindi)

 मध्यमान को कभी कभी अंकगणितीय माध्य या औसत भी
कहा जाता है। जब किसी एक समूह की आंकड़ों अथवा प्राप्त अंकों को जोड़कर समूह की
संख्या से विभाजित किया जाता है तो प्राप्त राशि को उस समूह के आंकड़ों का मध्यमान
कहा जाता है। मध्यमान एक ऐसा स्थिर अंक होता है
, जो पूरे समूह का प्रतिनिधित्व करता है।

 

मध्यमान का अर्थ (Mean in hindi)

मध्यमान का सीधा सा अर्थ यह है कि किसी भी संख्या के ठीक बीचोबीच के अंक को उसका ‘मध्य’ यानी कि बीच का ‘मान’ यानी कि अंक को दर्शना।

 

मध्यमान किसे कहते हैं (Mean in hindi)

 

गणितीय भाषा में किसी भी संख्या को जोड़कर जब उसके पद संख्या से भाग देने पर प्राप्तांक को ही मध्यमान कहते हैं।
 

मध्यमान की विशेषता (Mean in hindi)

  • मध्यमान केंद्रीय प्रवृति का सबसे शुध्द माप होता है।
  • इसकी गणना दिये गए अंक- वितरण की प्रत्येक संख्या से प्रभावित होती है अर्थात
    मध्यमान की गणना में अंक –वितरण की प्रत्येक संख्या का अपना विशेष महत्व तथा स्थान
    होता है।
  • मध्यमान से यदि हम एक अंक –वितरण के विचलनों का पता लगते हैं और फिर उनका योग
    करते है तब योग हमेशा शून्य में आता है।
  • मध्यमान से लिए गये विचलनों के वर्गों का मान प्रायः कम रहता है जबकि केंद्रीय
    प्रवृति के अन्य किसी माप से प्राप्त विचलनों के वर्गों का योग अपेक्षाकृत अधिक
    रहता है।

मध्यमान के गुण या लाभ (Mean in hindi)

  • इसकी गणना सरलता एवं शीघ्रता से हो जाता है।
  • इस माप में शुध्दता  की मात्रा भी सबसे
    अधिक रहती है ।
  • यह माप अपने अंक-वितरण का एक ही संख्या में प्रायः अधिक शुध्द रूप से
    प्रतिनिधित्व करता है ।
  • इसका अर्थ सामान्य व्यक्ति के लिए समझना प्रायः सरल होता है।
  • इस माप से दूसरे समूहों के प्राप्तांकों से तुलनात्मक अध्ययन में महत्वपूर्ण
    सहायता मिलती है।
  • इस माप का स्वरूप प्रायः अधिक स्थायी व विश्वसनीय रहता है।
  • इस माप से अन्य सांख्यिकीय मापों जैसे प्रमाप विचलन तथा सह संबंध गुणांक की
    गणना में अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है ।

मध्यमान के दोष (Mean in hindi)

  • इसकी मात्रा पर आरंभ व अंत की संख्याओं का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।
  • जब अंकों का वितरण सामान्य नहीं होता, तब इसका प्रयोग प्रायः उपयोग ठीक नहीं होता, इसका
    प्रायः केवल उसी स्थिति में उत्तम रहता है
    , जबकि अंक वितरण
    का स्वरूप सामान्य हो।
  • जब अंक वितरण अपूर्ण हो तब मध्यमान का उपयोग ठीक नहीं होता है।    

मध्यमान की गणना 

मध्यमान की गणना निम्नलिखित दो विधियों से की जा सकती है –

  1. प्रत्यक्ष विधि (Direct Method )
  2. लघु विधि ( Short Cut Moethod )

1. प्रत्यक्ष विधि (Direct Method )

    इस विधि के अनुसार आंकड़ों के सभी मूल्यों (X1, X2,……Xn) को जोड़कर योग X को उनकी संख्या (N) से भाग दे दिया जाता है। यह विधि
अंत्यन्त सरल है परन्तु  इसका उपयोग ऐसे
आकड़ों में  ही उचित है जिनमें चर – मूल्यों
की संख्या कम हो।

2. लघु विधि ( Short Cut Moethod) 

जब चर- मूल्यों की
संख्या अधिक हो और मूल्य आपस में बहुत भिन्न न हो
, तब लघु- विधि द्वारा मध्यमान की गणना करना उचित होता है। इस
विधि में सिविधाजनक मूल्य को कल्पित मध्यमान मानकर प्रत्येक मूल्य से उसका विचलन
ज्ञात किया जाता है। तत्पश्चात विचलनों के योग को उनकी संख्या से भाग देकर जो अंक
प्राप्त  होता है उसे उसके बीजगणितीय चिन्ह
+ या – के अनुसार कल्पित मध्यमान में जोड़कर या घटाने से मध्यमान ज्ञात कर लिया
जाता है।

 मध्यमान की गणना मुख्यतः तीन श्रेणी से  किया जाता हैं

1.
व्यक्तिगत
श्रेणी (
Individual series)

2.
खंडित श्रेणी (Discrete series)

3.
सतत श्रेणी (Continuous Series)

1. व्यक्तिगत श्रेणी (Individual series)

    व्यक्तिगत श्रेणी का मध्यमान
प्रत्यक्ष अथवा लघु विधि द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।

प्रश्न: एक कक्षा में दस विद्यार्थियों के गणित विषय में अंक नीचे दिये गए
हैं। दिए गए अंकों के आधार पर गणित विषय में विद्यार्थियों के अंक का मध्यमान
ज्ञात कीजिए।

विद्यार्थी

A

B

C

D

E

F

G

H

I

J

अंक

78

65

59

54

62

63

48

55

71

65

 

मध्यमान का सूत्र

 

 

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