दूरदर्शन पर निबंध लिखिए (doordarshan par nibandh likhiye)

दूरदर्शन पर निबंध लिखिए (doordarshan par nibandh likhiye)

 दूरदर्शन पर निबंध

रूपरेखा– भूमिका, दूरदर्शन का आविष्कार से विकास की यात्रा, दूरदर्शन की उपयोगिता मनोरंजन के साधन के रूप में, शिक्षा प्रचार का साधन, सामाजिक चेतना में सहाय, दूरदर्शन का कुप्रभाव, निष्कर्ष

भूमिका– दूरदर्शन आधुनिक युग का एक अद्भुत अविष्कार है यह प्रत्येक दिन जो भी घटना घटती है उन्हें प्रसारित करता है दूरदर्शन ज्ञान का एक उत्तम साधन है जिससे छात्रों एवं अन्य व्यक्तियों को भरपूर जानकारी प्राप्त होती है। दर्शकों को सचित्र प्रत्यक्ष शिक्षित करने वालो शिक्षक है। इसकी प्राचीनता महाभारत काल से जोड़ी जा सकती है। महाभारत युग में भी संजय के पास दूरदर्शन सरीखा कोई यंत्र रहा होगा, जिसके माध्यम से वे महाराजा धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध की संपूर्ण गाथा सुनाते रहे। महाभारत कालीन आलौकिक शक्तियों एवं दिव्य दृष्टि में संजय की दृष्टि रही। आधुनिक दिव्य दृष्टि टेलीविजन का आगमन विश्व में विगत चार दशकों से हुआ है।

 

दूरदर्शन का आविष्कार से विकास तक की यात्रा– सर्वप्रथम दूरदर्शन द्वारा हमारे देश में प्रसारण 15 सितंबर 1959 को नई दिल्ली में शुरू हुआ। उस समय टेलीविजन विभाग आल इंडिया रेडियो के ही अंतर्गत था। प्रसारण की सीमा दिल्ली के आस-पास केवल 40 किलो मी. थी। उस समय केवल स्कूली बच्चों के लिए पढ़ाई का कार्यक्रम प्रसारित होता था। 1965 में टेलीविजन थोड़ा विकसित हुआ पर 15 अगस्त 1956 से प्रतिदिन की सेवा की शुरुआत की गई। टेलीविजन की लोकप्रियता एवं विकास यात्रा की सफलता का सूत्र यह है कि आज टेलीविजन भारतीय जनता के बीच आवश्यक आवश्यकता का रूप प्राप्त कर लिया है।

 

दूरदर्शन की उपयोगिता मनोरंजन के रूप में- आधुनिक दूरदर्शन मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन बन चुका है। अनेक चैनलों के प्रभावी कार्यक्रमों से जनता लाभन्वित होती रहती है। इसके श्रवण-दर्शन से ज्ञानवर्धन और मनोरंजन दोनों ही होता है। विविध केंद्रों से समय-समय पर फिल्म का प्रसारण होता है। फिल्मों मिलती पर आधारित गीत-संगीत की बानगी चित्रहार में मिलती है। कविता प्रेमी दर्शकों को घर बैठे देश के विभिन्न भागों में होने वाले कवि सम्मेलनों व मुशायरों का आनंद मिलता रहता है। लोक-गीत, लोक-नृत्य दूर-दराज के ग्रामीण दर्शन लोक अभिव्यक्ति का आस्वादन कर सके। इस तरह के कार्यक्रमों के पीछे लोककलाएं के संरक्षण एवं संवर्धन की भावना निहित रहती है। अन्तयाक्षरी , प्रश्नोत्तरी जैसे कार्यक्रमों ने विशेष लोकप्रियता प्राप्त की है।

 

शिक्षा प्रचार का साधन– दूरदर्शन के द्वारा शिक्षा का प्रचार प्रसार भी होता है। यह बच्चों का सार्थक शिक्षक है। इसके माध्यम से बच्चों को पाठयक्रम संबंधी ज्ञान, विद्वान व विशेषज्ञ शिक्षकों द्वारा दिया जाता है। आजकल प्रत्येक विषय के लिए दूरदर्शन पाठ्यक्रम निर्धारित है। प्रौढ़शिक्षा पर तरह-तरह के कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय और U.G.C के पाठ्यक्रमों का प्रसारण दूरदर्शन कि शिक्षा के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि है। प्रात: कालीन से प्रसारित पुस्तक समीक्षा साहित्य जगत में काफी लोकप्रिय है। समसामयिक परिचर्चाएं सामाजिक गुत्थियों को सुलझाने में महत्वपूर्ण कड़ी रही है। समाचारों का प्रसारण विद्यार्थियों, वयस्कों एवं सामान्य जन में विशेष लोकप्रिय है। विज्ञापनों के प्रसारण से व्यापारी वर्ग को तो लाभ होता ही है जनता भी बाजार में आने वाली नए उत्पादन हो को घर बैठे जान जाती है। दूरदर्शन शिक्षा में विद्यार्थियों की दर्शनेन्द्रयां और श्रवणेन्द्रिया दोनों ही एक साथ काम करती हैं। फलत: एक ओर जहां शिक्षा कार्य सरल, प्रभावशाली और यथार्थ परक होता है, वही मनोरंजक भी हो जाता है।

 

सामाजिक चेतना में सहायक– आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक स्वस्थ्य आदि के विकास में टेलीविजन सार्थक एवं सहयोगी साबित हुआ है। या राष्ट्रीय विकास की आवश्यकताओं, संभावित पहुंच, प्रौद्योगिकी एवं आर्थिक पहलुओं के लिए बहुत बड़ी कड़ी के रूप में सिद्ध हुआ।

 

दूरदर्शन का कुप्रभाव – दूरदर्शन से जहां अनेक लाभ है वही उससे हानियां भी है। यदि इसका उपयोग सही तारीको एवं नीतियों के तहत राष्ट्रीय हितों के लिए नहीं हुआ तो वह समय दूर नहीं है जब पूरा देश आधुनिकता की आंधी में उड़ने लगेगा। पश्चिमी अंधानुकरण से प्रभावित कार्यक्रमों के प्रसारण से संस्कृति पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। दूरदर्शन के कार्यक्रमों ने घर के बच्चों की पढ़ाई को अत्यधिक प्रभावित किया है। बच्चे विद्यालय से दिया गया गृह कार्य व अध्ययन छोड़कर दूरदर्शन पर प्रसारित प्रतिक कार्यक्रम को देखने में संलग्न हो जाते हैं। संपूर्ण अध्ययन एवं समुचित तैयारी के अभाव में परीक्षा में अनुचित साधनों का प्रयोग करते हैं या फिर असफल हो जाते हैं। दूरदर्शन पर पहले की अपेक्षा अब ज्यादा फिल्में दिखायी जा रही हैं। इन फिल्मों के चयन मैं पूरी सावधानी न बरतने के कारण अधिकतर घटिया फिल्में प्रसारित कर दी जाती हैं। कला के नाम पर देर रात को दिखाई जाने वाली फिल्मों में कभी-कभी भौड़े दिखाये जाते हैं जिसका दर्शकों की मानसिकता पर अस्वस्थ प्रभाव पड़ता है।

 

निष्कर्ष– वर्तमान समय में दूरदर्शन की उपयोगिता बहुत अधिक है। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं नैतिक मुल्य समाज को सही दिशा देने, संस्कृतियों के संरक्षण एवं संबोधन में अतिसर्वत्र बर्जयेत का फार्मूला अपनाते हुए सही दिशा में दूरदर्शन का प्रयोग किया जाए। इसकी  कमियों को परिष्कार किया जाए और दुष्परिणामो के प्रति सचेत रह जाए तो निश्चित रूप से समृद्ध भारत के नवनिर्माण की भूमिका में दूरदर्शन का महत्वपूर्ण योगदान होगा।

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