पाठ्यक्रम की उपयोगिता (pathyakram ki upyogita)

पाठ्यक्रम की उपयोगिता (pathyakram ki upyogita)

पाठ्यक्रम क्या है

पाठ्यक्रम(curriculum) एक बच्चे का अनुभव है जो कि इस बात से कोई संबंध नहीं रखते कि वह कब और कैसे हुए। पाठ्यक्रम स्कूली जीवन(school life) का एक अहम हिस्सा है जो या निर्धारित करता है कि बच्चे किस स्कूली जीवन में किस प्रकार की गतिविधियों क्रियाकलापों इत्यादि शामिल किया जाए पाठ्यक्रम के बिना बच्चों के, विद्यालय के शिक्षक को यह भी नहीं पता चलता है कि उन्हें कब किस समय क्या करना है और क्या पढ़ाना है इन सभी की जानकारी उन्हें पाठ्यक्रम(curriculum)  के द्वारा ही प्राप्त होता है पाठ्यक्रम के अंतर्गत बच्चों के पढ़ाई सिलेबस(syllabus) साहित्य कार्यक्रम जैसे अनेकों गतिविधियां शामिल होते हैं जिसे केंद्र बिंदु बनाकर बच्चे को उनके लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में मदद मिलती है।

पाठ्यक्रम का अर्थ

पाठ्यक्रम को अंग्रेजी में ‘करिक्यूलम(curriculum)’कहते है जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘Currus’ से हुई है जिसका अर्थ है-“दौड़ना”।इस प्रकार पाठ्यक्रम एक ऐसा रास्ता है जिस पर चलकर एक विशेष लक्ष्य अथवा उद्देश्यों की प्राप्ति हो सकती है विद्यालयों का पाठ्यक्रम(curriculum) निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता करता है एक विद्यार्थी कहता है पाठ्यक्रम वे वस्तु है जो शिक्षक याद करवाता है।

पाठ्यक्रम की परिभाषा

एलिजाबेथ मेकिया के अनुसार :- पाठ्यक्रम में वह निर्देशात्मक विशिष्ट सामग्री सम्मिलित की जाती है जो छात्र और अध्यापक के व्यवहार के मध्य संबंध स्थापित करती हैं।

पाठ्यक्रम की उपयोगिता utility of curriculum

१. छात्रों का सर्वांगीण विकास करना
२. सभ्यता व संस्कृति का स्थानांतरण तथा विकास करना
३. बालक का नैतिक व चारित्रिक विकास करना
४. बालक की मानसिक शक्तियों का विकास करना
५. बालक की रचनात्मक और सृजनात्मक शक्तियों का विकास करना।
६. बालक में गतिशील रसीले मस्तिक का निर्माण करना
७. खोज की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना
८. बालक को भावी जीवन के लिए तैयार करना
९. शैक्षिक प्रक्रिया का स्वरूप निर्धारित करना
१०. बालकों की क्षमता, योग्यता एवं रुचि का विकास करना

१. छात्रों का सर्वांगीण विकास करना :-

पाठ्यक्रम (curriculum)का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य बालक के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास करना होता है जिसमें बालक के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक, व्यवसायिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक का विकास करना है।

२. सभ्यता व संस्कृति का स्थानांतरण तथा विकास करना :-

पाठ्यक्रम मनुष्य के सभ्यता एवं संस्कृति को बचाए रखता है तथा उसे आने वाले पीढ़ी को स्थानांतरण भी करता है इस प्रकार मानव सभ्यता व संस्कृति की रक्षा करना पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है।

३. बालक का नैतिक व चारित्रिक विकास करना :-

पाठ्यक्रम(curriculum) द्वारा बाला के नैतिक व चारित्रिक विकास किया जाता है इसके माध्यम से बालक में सहानुभूति सहयोग सहनशीलता सद्भावना अनुशासन मित्रता इमानदारी जैसे उच्च नैतिक गुणों का विकास किया जाता है। जिसे बालक एक श्रेष्ठ नागरिक बन सकें। इस प्रकार पाठ्यक्रम का एक मुख्य उद्देश्य बालक नैतिक व चारित्रिक विकास करना भी है।

४. बालक की मानसिक शक्तियों का विकास करना :-

पाठ्यक्रम के द्वारा बालक की शारीरिक विकास ही नहीं होती बरगी पाठ्यक्रम(curriculum) का एक उद्देश्य बालक के विभिन्न प्रकार की मानसिक शक्तियों का विकास करना भी होता है जिसमें चिंतन, मनन, तर्क, विवेक, निर्णय, स्मरण आदि शक्तियों का विकास करना पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है।

५. बालक की रचनात्मक और सृजनात्मक शक्तियों का विकास करना :-

पाठ्यक्रम के अंतर्गत आने वाले विषयों एवं खेलकूद व अन्य विकल्पों को आयोजित करने का उद्देश्य बालक में निहित सृजन व निर्माण की शक्तियों को जगाना होता है कार्यक्रम के द्वारा बालक की रचनात्मक और सृजनात्मक शक्तियों का विकास करना बहुत ही आसान हो जाता है क्योंकि पाठ्यक्रम अपनी साथ बहुत से आयामों को लेकर आगे बढ़ता है।

६. बालक में गतिशील रसीले मस्तिक का निर्माण करना :-

स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। इस स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण भी शिक्षा द्वारा ही किया जाता है पाठ्यक्रम का एक उद्देश्य बालक में गतिशील लचीले मस्तिष्क का निर्माण करना भी है।

७. खोज की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना :-

पाठ्यक्रम के द्वारा बालक में खोज की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है क्योंकि पाठ्यक्रम(curriculum) बच्चों की उत्सुकता वह जिज्ञासा को बढ़ाता है जिससे बालक तरह-तरह के चीजों को अनेक तकनीकी तरीकों से खोजने का प्रयास करता है जिससे उनके भावी जीवन में उन्हें उन्नति मिले।

८. बालक को भावी जीवन के लिए तैयार करना :-

शिक्षा संपूर्ण जीवन की तैयारी हैं तथा पाठ्यक्रम बालकों को उनके भावी जीवन के लिए तैयार करता है। पाठ्यक्रम विषयों व क्रियाओं के मध्य सामंजस्य स्थापित करके बालकों को शारीरिक मानसिक वह सर्वांगीण विकास करने का पर्यटन करता है ताकि बालक का संतुलित विकास हो सके और वह अपने भावी जीवन में सफल मनुष्य बन कर उभर सकें।

९. शैक्षिक प्रक्रिया का स्वरूप निर्धारित करना :-

पाठ्यक्रम का दायित्व बालक के प्रति होने के साथ-साथ संपूर्ण शिक्षा प्रक्रिया की ओर भी है। पाठ्यक्रम शिक्षण क्रियाओं व शिक्षक के माध्य की अंतः क्रिया को स्पष्ट करता है। साथ ही शिक्षक व शिक्षार्थी के मध्य किस प्रकार के अंतः क्रिया हो, इसका स्वरूप भी निर्धारित करता है।

१०. बालकों की क्षमता, योग्यता एवं रुचि का विकास करना :-

पाठ्यक्रम का एक विशेष उद्देश्य बालकों की स्वर प्रमुख उद्देश्य क्षमताओं को योग्यताओं का विकास करना भी होता है साथ ही बालक की क्षमता योग्यता रुचियों को भी प्रोत्साहित करता है।

पाठ्यक्रम का निष्कर्ष

पाठ्यक्रम (curriculum) अपने साथ संपूर्ण गतिविधियों को समझते हुए चलता है जिसे बालक के भावी जीवन में उन्हें अपने लक्ष्य की प्राप्ति हो। पाठ्यक्रम विद्यालय को एक रोशनी प्रदान करता है जिससे शिक्षक बच्चों को उनके लक्ष्य की ओर ले चलते हैं। पाठ्यक्रम(curriculum) बच्चों के अनुकूल ही बनाया जाता है ताकि बच्चे का सर्वांगीण विकास हो सके।

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