कबीर के रहस्यवाद पर प्रकाश डालिए(kabir ke rahasya ward par prakash daliye)

कबीर के रहस्यवाद पर प्रकाश डालिए(kabir ke rahasya ward par prakash daliye)

कबीर दास की जन्म और मृत्यु दोनों तिथियां अनिर्णीत है। विद्वानों ने अपने अपने ढंग से इस संबंध में अटकलें लगाने की कोशिश की है। कबीर का लालन-पालन नीरू और नीमा नामक मुसलमान दंपति ने किया। इनके संबंध में कहा जाता है कि इन्होंने स्याही, कागज और कलम का स्पर्श नहीं किया था-‘मसि कागद छुऔ नहिं,कलम। गह्यै नहिं हाथ। फिर भी, कबीर ने अपनी प्रतिभा शक्ति से हिंदी साहित्य का अतिशय कल्याण किया। कबीर भक्ति काल के ज्ञानाश्रयी (निर्गुण) शाखा के प्रवर्तक कवि हैं। इनके दीक्षा गुरु वैष्णव भक्त रामानंद है।

उनके दृष्टि में ईश्वर अथवा ब्रह्म की व्याप्ति दुनिया के कण-कण में है अतः उसे अयंत्र खोजने की जरूरत नहीं। ब्रह्म प्राप्ति के लिए हृदय की स्वच्छता और पवित्रता चाहिए। कबीर सात्विक जीवन के समर्थक और शुद्ध सत्य के पुजारी थे। उन्होंने किसी धर्म ग्रंथ को महत्व नहीं दिया। आडंबर हीन जीवन जीने में उन्हें पूरा विश्वास था। उन्होंने तटस्थ भाव से हिंदुओं और मुसलमानों के धर्मों में निहित आडंबर वादी प्रवृत्तियों कि खुलकर आलोचना की। उनके मस्तिष्क में स्वस्थ और स्वच्छ समाज की परिकल्पना थी। उनका जीवन अंत अंत तक लाग लपेट से पूरी तरह से दूर रहा। मैं समाज सुधारक थे और भक्त भी।

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उन्होंने राम को अपने प्रियतम के रूप में स्वीकार किया। व्यक्ति के जीवन की अंतिम आकांक्षा परमात्मा से साक्षात्कार की होती है। जब तक परमात्मा से आत्मा का मिलन नहीं हो जाता जीवन अधूरा और अपूर्ण है। परमात्मा ही जीवन का सर्वस्व है। हिंदी साहित्य में कबीर के समान दूसरा कोई अखंड कभी नहीं है। उनकी दृष्टि में ज्ञानी और पंडित वही है जिसने ढाई अक्षर प्रेम इस शब्द को अच्छी तरह से पहचान लिया हो-

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ,

     पंडित भया न कोय

     ढाई आखर प्रेम का

      पढ़ें सो पंडित होय।

 

कवि के रूप में कबीर जीवन के अत्यंत निकट हैं। सहजता उनकी रचनाओं की सबसे बड़ी शोभा और कला की सबसे बड़ी विशेषता है। कबीर के काव्य में दांपत्य एवं वात्सल्य के द्योतक प्रतीकों का सुंदर प्रयोग हुआ हैं। रहस्यवाद से संबंध पदों में अकथनीय अनुभव को व्यक्त करने के लिए उन्होंने पग पग पर प्रतिकों का आश्रय लिया है। प्रभावसाभ्य के कारण उनके प्रतीक ओर से तादृशी भावना जागृत होती है। इसमें संदेह नहीं कि कबीर की दूरदर्शिता रसज्ञता, सहृदयता तथा संवेदनशीलता ने उनके काव्य में विभाव-पक्ष को सुंदर और प्रभावशाली बना दिया है। फिर भी उनमें वह सतर्कता एवं सावधानी नहीं मिलती जो लिखित साहित्य के लिए अपेक्षित है। काव्य सौंदर्य की अभिवृद्धि के साधनों छंद, अलंकार आदि के प्रति उनके मन में कोई पूर्वनिष्ठा नहीं है। उनके रुपक तथा उपमाएं दैनिक जीवन से संबद्ध हैं। सत्य तो यह है कि काव्य रचना उनका साध्य या लक्ष्य नहीं था फिर भी उन्हें महान संदेशों के अभिव्यक्ति के लिए उन्हें काव्य को माध्यम बनाना पड़ा। इस प्रकार राष्ट्रवादी संत और धर्मगुरु होने के साथ-साथ वे भाव प्राण कवि भी थे।

 

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