शैशवावस्था में सामाजिक विकास


जन्म के समय शिशु सामाजिक प्राणी नहीं होता है। जैसे-जैसे बालक का शारीरिक और मानसिक विकास होता है वैसे वैसे उसका सामाजिक विकास भी होता जाता है। शिशु के समाजीकरण की प्रक्रिया दूसरे व्यक्तियों के साथ उसके संपर्क से प्रारंभ होती है शैशवावस्था में शिशु का सामाजिक विकास जिस क्रम से होता है उसे हरलॉक ने इस प्रकार से प्रस्तुत किया है-

१. पहला महीना शिशु में सामाजिक विकास :-

जन्म से लेकर 30 दिन तक शिशु किसी वस्तु यह व्यक्ति को देखकर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं करता है लेकिन तीव्र प्रकाश और ध्वनियों के प्रति प्रतिक्रिया अवश्य करता है इसके अलावा शिशु रोने और नेत्रों को घुमाने की प्रतिक्रिया करता है।

२. दूसरे महीना शिशु में सामाजिक विकास:-

 दूसरे महीने में बालक या शिशु आवाजों को पहचानने लगता है। जब कभी थी उससे बात करता है या ताली बजाता है या खिलौना दिखाता है तो वह आवाज को सुनकर वह सिर घुमाता है तथा दूसरों को देखकर मुस्कुराता है।

३. तीसरा महीना शिशु में सामाजिक विकास :-

शिशु सीमा होने पर अपनी मां तथा परिवार के सदस्यों को पहचाने लगता है। जब कोई शीशों की देखकर बात करता है यह ताली बजाता है तो वह रोते-रोते चुप हो जाता है तथा उसकी ओर देखने लगता है।

४. चौथा महीना शिशु में सामाजिक विकास :-

शिशु पास आने वाले व्यक्ति को देख कर हंसता है, मुस्कुराता है। जब कोई व्यक्ति उसके साथ खेलता है तो खेलता है अकेला रह जाने पर वह रोने लगता है।

५. पांचवा महीना शिशु में सामाजिक विकास:-

शिशु प्रेम व क्रोध में अंतर समझने लगता है। दूसरे व्यक्ति के हंसने पर अथवा प्रसन्न होने पर वह भी हंसता है तथा किसी के नाराज होने पर अथवा प्रसन्न होने पर वह भी हंसता है तथा किसी के नाराज होने पर अथवा डांटने पर सहम जाता है तथा प्राय: रोना लगता है।

६. आठवां महीना शिशु में सामाजिक विकास :-

आठवां महीना का बालक या शिशु बोले जाने वाले शब्दों और हाव-भाव का अनुकरण करने लगता है।

७. 1 वर्ष शिशु में सामाजिक विकास:

1 वर्ष के बालक या बालिका है मना किए जाने वाले कार्यों को नहीं करता है।

८. सवा वर्ष शिशु में सामाजिक विकास:-

सवा वर्ष के शिशु बड़ों के साथ रहने व उनके व्यवहार का अनुकरण करने की प्रवृत्ति दिखाई देने लगती है।

९. दो वर्ष शिशु में सामाजिक विकास :-

दो वर्ष के शिशु परिवार का सक्रिय सदस्य बन जाता है क्योंकि वह बड़ों के साथ घर का कार्य भी करने लगता है।

१०. दो और तीन वर्ष के बीच के शिशु में सामाजिक विकास :-

 सामाजिक विकास तीव्र गति से होता है। उसकी रूचि खिलौनों से हटकर उसके साथ खेलने वाले साथियों में हो जाती है। वह खेलने के लिए साथ ही बनाने लगता है और उनसे सामाजिक संबंध स्थापित करता है। उसके व्यवहार में परिवर्तन होने लगता है। उसके आत्म केंद्रित व्यवहार का सामाजिकरण आरंभ हो जाता है।

११. चौथा और पांचवां वर्ष के शिशु में सामाजिक विकास :-

 इस वर्ष में शिशु नर्सरी विद्यालय में प्रवेश लेता है वह नए सामाजिक दुनिया में प्रवेश कर लेता है और नए सामाजिक संबंध स्थापित करने लगता है।

१२. पांचवा वर्ष के शिशु में सामाजिक विकास :-

 पांचवा वर्ष में शिशु दूसरे बच्चों के समूह में रहना पसंद करता है साथ ही उनसे लेन देन करना और अपने खेल के साथियों को अपने वस्तुओं में साझेदारी बनाना सीख जाता है। वह जिस समूह का सदस्य होता है, वह उसी समूह के अनुरूप बनने की चेष्टा करता है।

१३. पांचवा व छठा वर्ष के शिशु में सामाजिक विकास:-

 छठा वर्ष आते-आते शिशु में नैतिक भावना का विकास आरंभ हो जाता है।
इस प्रकार शैशवावस्था में सामाजिक विकास होता है शिशु प्रथम माह से 6 वर्ष तक का काल बच्चों के जीवन में बहुत सारे परिवर्तन लेकर आता है और उन्हें एक नया जीवन प्रदान करता है।

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