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शिक्षा का महत्व (importance of education) (shiksha ka mahatva)
शिक्षा, मानव विकास का नाम है। मानव का विकास अनेक प्रक्रियाओं से तथा अवस्थाओं से होता है। इन अवस्थाओं में बालक स्वाभाविक रूप से विकसित होता है पर कुशल माली की तरह शिक्षक उसका संशोधन करता है। यह संशोधन उसमें मानवीय गुणों का विकास करता है।
शिक्षा के तत्व हैं - अध्यापक, छात्र कैसे और क्या। शिक्षा में इन चारों का समन्वय किया जाता है। अध्यापक अपने पूर्व अनुभव तथा अर्जित ज्ञान के द्वारा छात्रों को नवीन अनुभव प्रदान करता है और उनके भावी जीवन का निर्माण उसी आधार पर करता है। शिक्षा का अर्थ ही ज्ञानार्जन द्वारा संस्कारों अथवा व्यवहारों का निर्माण करना है। मानव अपने अनुभव से सदैव ही कुछ न कुछ सीखता रहा है। प्राचीन काल में मानव आपने बालकों को शिकार करने, पशुपालन एवं खेती की शिक्षा देता रहा है, उसका स्वरूप भरे ही कुछ भी रहा हो, समाज के विकास के साथ-साथ शिक्षा के वीडियो में भी परिवर्तन होता गया। शिक्षा के उद्देश्य कार्यक्षेत्र, प्रसार एवं नवीन मान्यताएं देश काल तथा परिस्थितियों के अनुसार भिन्न भिन्न रहे हैं। एक समय था जब स्पार्टा तथा एथेंस में शारीरिक शक्ति का विकास ही शिक्षा का धैर्य समझा जाता था। प्राचीन काल में शिक्षा का लक्ष्य बच्चों की शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करना था। इस प्रकार शिक्षा का महत्व में व्यापक होता है।
१.व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में शिक्षा का महत्व (Importance of education in all round development of an individual) :-
आज व्यक्ति जिस मुकाम पर पहुंचा है वह शिक्षा के बलबूते ही पहुंचा है क्योंकि शिक्षा व्यक्ति को इस काबिल बनाता है जिससे व्यक्ति का संपूर्ण या सर्वांगीण विकास हो सके। शिक्षा कभी भी विनाश की ओर किसी भी मनुष्य को नहीं लेकर गया है। मानव के अंदर ही कुछ ऐसी शक्तियां होती है जो उसके अंदर से बाहर निकलते हैं सीधे तौर पर कह सकते हैं कि सीखने की प्रक्रिया को ही शिक्षा कहा जाता है व्यक्ति जो कुछ भी सोचता समझता और करता है वह शिक्षा के बदौलत ही करता है शिक्षा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है। शिक्षा के बिना मनुष्य मनुष्य नहीं बल्कि एक पशु के समान हैं।
२. नैतिक विकास में शिक्षा का महत्व (Importance of education in moral development):
नैतिक यानी कि अच्छे विचार। जो एक व्यक्ति के अंदर शिक्षा के माध्यम से ही पनपता है जब बच्चा जन्म लेता है तब उनके अंदर नैतिकता जीरो होता है जैसे-जैसे वह बड़ा होते जाता है तथा समाज से घुलता मिलता है वह समाज को तथा अपने परिवार को समझने लगता है एक परिवार का बच्चा अच्छे नैतिकता वाले परिवार से संबंधित रखता है तो उनके अंदर उसी प्रकार के नैतिकता का विकास होता है सीधे रूप में कहा जाए तो शिक्षा के द्वारा ही एक बालक या बलिका अपने अंदर नैतिक विकास करता है इसलिए जैसे बालक का लालन पालन एवं गुण-अवगुण की शिक्षा दी जाती है वैसे ही बालक का स्वभाव भी होता है आज आधुनिक युग में नैतिक शिक्षा बस एक स्कूली शिक्षा तक ही सीमित रह गया है। प्राचीन काल में जिस प्रकार का नैतिक शिक्षा दिया जाता था। आज उस प्रकार की नैतिक शिक्षा गिने चुने ही दिखाई देता है बच्चे बड़ों का आदर, सम्मान करना भूल चुके हैं वह अपने जीवन में ही सीमित रह गए हैं अतः स्कूल के साथ-साथ बच्चों को अपने परिवार में भी नैतिक शिक्षा देनी चाहिए।
३. जीविकोपार्जन में सहायक (Helpful in life subsistence):
आज किसे रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता नहीं है इनके बिना व्यक्ति का जीवन नरक के समान हैं इन जरूरतों का भरमाल शिक्षा करता है। हालांकि मजदूर या किसान जो कम पढ़े लिखे होते हैं उन्हें भी शिक्षा की आवश्यकता होती है जिससे अपनी जीविकोपार्जन को बढ़ा सकें। एक किसान खेती करने से पहले खेती के बारे में जाने ना और समझने का प्रयास करता है ताकि उनकी खेती उत्तम किस्म की हो। किसान चाहे किसी से पूछता है या किसी से सुनता है यानी कि एक प्रकार का शिक्षा ही ग्रहण करता है बालक या बालिका को शिक्षा इसलिए दी जाती है कि अपने जीविकोपार्जन कुछ सही ढंग से बढ़ा सकें। एक शिक्षित व्यक्ति किसी भी तरह से जीविकोपार्जन कर सकता है। अपनी जरूरतों को अपनी बुद्धि माता के बलबूते पूरा करता है अतः शिक्षा का महत्व जीविकोपार्जन में सहायक है।
४. नई-नई खोज में सहायक(Helpful in new discovery) :
मानव एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहकर अपनी जरूरतों को पहचान कर उसकी निर्माण या आविष्कार करता है। मनुष्य अपनी आवश्यकता अनुसार अनेक चीजों का निर्माण करता है जिससे मानव को उससे फायदा हो सके। आज शिक्षा इतनी मजबूत हो गया है कि छोटे से छोटे बच्चे भी देश एवं समाज के बारे में सोचने लगा है इन्हीं सभी का विकास स्कूल करता है उनके अंदर की सोच को बाहर निकालना स्कूल का काम है अतः बालक के अंदर छिपे शक्तियों को बाहर निकालना एवं नए-नए खोज में सहायता करना स्कूल का काम है स्कूल से ही हम बहुत कुछ सीखते हैं। नये-नये खोज एवं अविष्कार में शिक्षक काफी मददगार होती है।५. बालक में नागरिकता की भावना का विकास करने में शिक्षा का महत्व(Importance of education in developing a sense of citizenship in the child) :
नागरिकता की भावना का विकास करने हेतु सर्वप्रथम छात्रों के अंदर अच्छी आदतों का विकास करना, उनमें नेतृत्व की क्षमता का विकास करना आवश्यक होता है और ये सभी बालक के अंदर शिक्षा के माध्यम से प्रदान किया जा सकता है। तभी वे देश के लिए सुयोग्य नागरिक सिद्ध हो सकेंगे तथा देश की प्रगति को एक निश्चित दिशा प्रदान कर सकेंगे और ये सभी अच्छी शिक्षा के माध्यम से ही पूरा हो सकता है।
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