diversity meaning in hindi विविधता के प्रकार


diversity meaning in hindi :

विविधता,विभिन्नता, विभेद, बहुरूपता, विभिन्नता।

विविधता का अर्थ (meaning of diversity in hindi) :

विविधता से तात्पर्य हैं जहां विभिन्न धर्म संस्कृति जाति भाषा आदि के लोग साथ साथ रहते हैं और अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। जिस प्रकार किसी मनुष्य के रंग रूप रहन सहन खानपान इत्यादि में विभिन्नता होती है या विभिन्न रूप होते हुए भी समान होते हैं diversity (विविधता) कहलाता है। जैसे भारतीय संस्कृति विविधता में एकता का अनूठा रूप और आदर्श प्रस्तुत करता है।

विविधता के प्रकार (types of diversity) :

१. धार्मिक विविधता (dharmik vividhata)
२. सांस्कृतिक विविधता (Sanskritik vividhata)
३. भाषागत विविधता (Bhashagat vividhata)
४. जातीय विविधता (jaatiy vividhata)
५. जनजातीय विविधता (janjatiya vividhata)

१. धार्मिक विविधता (dharmik vividhata) :

 भारत समाज और जनजीवन में धार्मिक विविधता देखने को मिलती हैं। विश्व के सभी धर्मों का विकास भारत में ही हुआ है इसी कारण भारत समाज धर्म की दृष्टि से अनेक वर्गों में विभक्त हो गया 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में 7 धर्म माने गये हैं। हिंदू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और अन्य धर्म। हिंदू धर्म में अनेक देवी-देवताये उत्साह तीर्थ यात्राएं मूर्ति पूजन आदि प्रचलित हैं उसी प्रकार मुस्लिम में भी अलग अलग संप्रदाय एवं शिक्षा है सिख धर्म भी एक ईश्वर वादी धर्म है जिसमें एक ही ईश्वर को परम माना गया है ईसाई धर्म को भी दो भागों में बांटा गया है। कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंट। इसी प्रकार बहुत जल्दी आता है उसी प्रकार अन्य धर्म में पारसी धर्म आता है यह एक लघु समुदाय हैं जिस का आगमन आठवीं शताब्दी में पसिया से हुआ इस धर्म के संस्थापक जरथूस्त्र थे। इस प्रकार धर्म विनीता देखने को मिलती है।

२.सांस्कृतिक विविधता (Sanskritik vividhata) :

भारत के बहु सांस्कृतिक देश है जहां के लोगों के विभिन्न रहन सहन और खानपान है उनके अपने रीति-रिवाज त्यौहार इत्यादि मानने का ढंग एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं कहीं गणेश पूजा को अधिक महत्व दिया जाता है तो कहीं दुर्गा पूजा को। अतः ये सभी अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए तट पर हैं और संविधान भी इन्हें इसकी इजाजत देती हैं अतः भारत संस्कृति को पूरे विश्व में जाना जाता है।

३. भाषागत विविधता (Bhashagat vividhata) :

भाषा मनुष्य के आदान-प्रदान का शक्तिशाली माध्यम है भारतीय समाज में 3000 से अधिक बोलियां तथा भाषाएं हैं हिंदी हमारे मातृभाषा है परंतु दक्षिण भारत में अंग्रेजी और दक्षिण भारतीय भाषाओं का प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार भारत में 10 मील में भाषा और बोली में अंतर आ जाता है सन 1991 की जनगणना के अनुसार देश 1652 भाषा बोली जाती है परंतु भारतीय संविधान में 15 भाषाओं का ही उल्लेख किया गया है 1992 में अन्य तीन भाषाओं को मान्यता दी गई है इस प्रकार इन 18 भाषाओं का उल्लेख सरकारी कार्यालयों में प्रयोग किया जाता है वर्तमान में 22 भाषाओं को मान्यता मिल चुकी है इसके अतिरिक्त भारत में अनेक भाषाएं एवं बोलियां हैं जैसे हिंदी में अवधि, बघेली, भोजपुरी, ब्रज, बुंदेली आदि भाषाएं एवं अनेक बोलियां हैं इस प्रकार हमारे देश व समाज में भाषागत विविधता भी बहुत हैं।

४. जातीय विविधता (jaatiy vividhata) :

भारतीय समाज में जाति के आधार पर विविधता दिखाई देती हैं वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था थी जो जन्मता न होकर कर्मणा होते थे। जाति विविधता हिंदू धर्म की देन है परंतु ये विविधता सभी धर्मों में दिखाएं देते हैं। प्राचीन काल में जाति को 4 वर्गों में विभाजित किया गया था।
१. ब्राह्मण : (विद्वान, सलाहकार, यज्ञ करने वाला)
२. क्षत्रिय : (रक्षा करने वाला -राजा, सैनिक)
३. वैश्य : (व्यापारी, सौदागर, खेत के मालिक, जमीदार)
४. शुद्र : (सेवक-तीनों वर्गों की सेवा करता है।)
आज हम देखते हैं कि जाति भेदभाव देश की राजनीति पर भी हावी हो गया है चुनाव के समय जातिवाद का उपयोग किया जाता है।

५. जनजातीय विविधता (janjatiya vividhata) :

जन जातियां से तात्पर्य है ऐसे मानव समूह जो आज भी सभ्यता की दौड़ में पीछे हैं तथा आदिम जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में 6.78 प्रतिशत जनजातीय लोग रहते हैं कुछ जनजाति आधुनिक सुख सुविधा को अपना लिया है और कुछ इन सुख-सुविधाओं से वंचित हैं इन सब जातियों की संस्कृति रहन सहन रीति रिवाज तथा भाषाएं हैं। भारतीय संविधान में भी इन जनजातियों को अधिकार एवं सुविधाएं दी गई है तथा इनकी संस्था भारतीय संविधान के अनुसार 216 है परंतु इसके अतिरिक्त भी बहुत सी जनजातीय हैं जो जनजाति है जीवन बिता रहे हैं संपूर्ण भारत को जनजातियों की दृष्टि से चार क्षेत्रों में बांटा गया है-
१. मध्य क्षेत्र:-मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल की जनजातीय आती है जैसे संथाल, मुंडा, उरांव, भूमीज, गोंड भुईया आदि।
२. उत्तर पूर्वी क्षेत्र:-हिमालय की तराई असम और बंगाल की जन जातियां आती हैं-गद्दी, गुज्जर, थारू, गारो, खासी, नागा।
३. दक्षिण क्षेत्र में:- केरल, मैसूर, मद्रास, पूर्व-पश्चिम क्षेत्रों में रहने वाली जनजातियां गोंडा, कोण्डा, गेरा, इरुला आदि।
४. पश्चिमी क्षेत्रों में:- राजस्थान गुजरात और महाराष्ट्र रहने वाली जनजातियां जैसे मीना, भील, कोकना आदि आते हैं।

विविधता के लाभ या विविधता के गुण

१. विविधता न होती तो जीवन उभाव हो जाता।
२. परस्पर निर्भर के लिए विविधता उपयोगी है।
३. विविधता के द्वारा व्यक्ति की रचनात्मक शक्तियों का विकास होता है।
४. विविधता के द्वारा उदार तथा शांतिपूर्ण अस्तित्व भावना का विकास होता है।
५. विविधता सांस्कृतिक गौरव का परिचायक है।
६. विविधता चाहे सामाजिक या आर्थिक हो देश की प्रगति में आवश्यक है।
७. विविधता के द्वारा हम एक दूसरे के पूरक बन सकते हैं तथा विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान करने में समर्थ हो सकते हैं।

विविधता के दोष

१. विविधता को आधार बनाकर देश में अशांति का वातावरण बनाना।
२. जातिय, प्रजातीय तथा धार्मिक विविधता को आधार बनाकर संप्रदायिक दंगे कराना।
३. ऊंच-नीच की भावना विकसित करना।
४. देश की एकता एवं अखंडता हेतु खतरा हो ना।
५. सांस्कृतिक टकरा हट तथा युद्ध की स्थितियों का पनपना।
६. राजनीति में विविधता को मोहरा बनाकर विकास के स्थान पर गंदी राजनीति करना।

विविधता मुक्त समाज में बच्चों की शिक्षा नीति एवं संवैधानिक प्रावधान:-

१. संविधान के अनुच्छेद 15 में वंश, धर्म, लिंग, जन्म स्थान आदि किसी भी आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है। यह अधिकार भारतीय नागरिकों को प्रदान किया गया है।
२. अनुच्छेद 15 3 में स्त्रियों एवं बच्चों के लिए विशेष व्यवस्था की गई है कि राज्य को सरकारी नौकरी में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को प्राथमिकता देना अर्थात् स्त्री एवं पुरुष आदि समान रूप से योग्य है लेकिन स्त्री अधिक योग्य है तो स्त्री को प्राथमिकता दी जा सकती हैं यह प्रावधान लिंग भेद को दूर करने के लिए किया गया है।
३. अनुच्छेद 15 4 में कहा गया है कि राज्य समाजिक तथा शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों तथा SC,ST के लिए विशेष प्रबंध करता है इसके माध्यम से समाज में जाति के आधार पर असमानता को दूर करने का प्रयास किया गया है।

 

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