growth and development (वृद्धि और विकास) human growth and development


Growth  and development in hindi

सामान्य बोलचाल की भाषा में अभिवृद्धि एवं विकास दोनों को एक ही अर्थ में प्रयोग किया जाता है। किंतु इन शब्दों के वास्तविक अर्थ में अंतर होता है। वृद्धि या अभिवृद्धि से तात्पर्य है- आकार,वजन, विस्तार, जटिलता आदि की दृष्टि से बढ़ना।जबकि विकास अर्थ है- व्यक्ति का एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पदार्पण करना। इस प्रकार अभिवृद्धि परिमाणात्मक और विकास का स्वरूप गुणात्मक होता है।

“वृद्धि (growth)”

वृद्धि का अर्थ है आकार , ऊंचाई और भार  में वृद्धि। जैसे – हृदय, मस्तिष्क, मांस पेशियां और शरीर की सामान्य वृद्धि ।

अभिवृद्धि(growth) :-कोशिकाओं की  गुणात्मक वृद्धि  ही अभिवृद्धि कहलाती है जैसे:- ऊंचाई,भार , चौड़ाई , हाथ पैर का बढ़ना और बालों का बढ़ना इत्यादि ।

फ्रेंक  के अनुसार:-  कोशीय गुणात्मक  वृद्धि ही अभिवृद्धि है।”

” शरीर  एवं व्यवहार की  किसी पहलू में होने वाली परिवर्तन अभिवृद्धि  कहलाते हैं।”

 

*मनोवैज्ञानिक दृष्टि से- *

1.आंतरिक प्रक्रिया:- वृद्धि एक आंतरिक प्रक्रिया है।

अर्नाल्ड के अनुसार:- वृद्धि वातावरण की अपेक्षा  जीव की कार्य प्रणाली है । वातावरण विकास के लिए परिवेश उपलब्ध  कराता है । लेकिन  ये स्वाभाविक , आंतरिक  संतुलन और वृद्धि  इतनी  जटिल और  संवेदनशील  कारक   पूर्ण  ढांचे का आंतरिक संतुलन   और वृद्धि की प्रवृद्धि  की दिशा आवश्यक है।

2.आंतरिक  परिवर्तन:- वृद्धि का अर्थ है ,मानव शरीर में होने वाले आंतरिक परिवर्तन अर्थात मांस पेशियों का बढ़ना अस्थियों का बढ़ना और शरीर की आंतरिक अंगों तथा आंतरिक जैविक प्रणाली के सामान्य आकार में वृद्धि।

3.बाहरी परिवर्तन:- मनोविज्ञान  में वृद्धि शब्द का प्रयोग बिल्कुल ही शारीरिक  अर्थ  में किया जाता है। इसका संदर्य  सामान्य आकार , लम्बाई और भार में वृद्धि से होता है अतः वृद्धि का संबंध परिणात्मक संबंध से होता है।

4.विकास परिवर्तन:- वृद्धि विकास का  केवल एक भाग है विकास के परिणात्मक और गुणात्मक दोनों  पहलू होते है । विकास के परिणात्मक पहलू को वृद्धि कहते है।

5.मापे जाने योग्य:-वृद्धि  मापी जा सकती है यह देखी और आंकी जा सकती है।

6.अनेक कारकों पर निर्भर:- वृद्धि एकीकृत करने वाला शब्द है यह कई कारकों की अन्त:क्रिया पर निर्भर है जैसे- शिक्षा , वातावरण,ग्रंथि स्त्राव और स्वास्थ्य ।

growth and developmentवृद्धि निरंतर जारी रहने वाली और जीवन प्रयास नहीं है यह भ्रूण अवस्था से आरंभ होती है और किसी विशेष अवस्था तक रहती हैं। यह व्यक्ति के परिपक्व होने पर रुक जाती हैं।

विकास(child development)

            व्यक्ति के विकास से अभिप्राय उसके गर्भ में आने से लेकर पूर्ण प्रौढ़ता  प्राप्त होने तक की स्थिति से हैं। विकास का अर्थ बड़े होने या कद एवं भार बढ़ने से नहीं हैं। विकास में परिपक्वता की ओर बढ़ने का निश्चित क्रम होता है। यह एक प्रगतिशील श्रृंखला होती है। प्रगति का अर्थ भी दिशा बोध युक्त होता है या दिशा बहुत आगे भी होता है और पीछे भी। निश्चित क्रम से अभिप्राय विकास में व्यवस्था रहने से हैं। प्रत्येक प्रकार का परिवर्तन इस बात पर आधारित होता है कि वह किस प्रकार क्रम का निर्धारण करता है। वृद्धि एक समय के बाद रुक जाता है पर विकास जन्म से लेकर मृत्यु तक निरंतर चलता ही रहता है।

जर्सेल के अनुसार:- विकास केवल प्रत्यक्ष नहीं है इसे देखा, जांचा और किसी सीमा तक तीन विभिन्न दशाओं जैसे
१. शारीरिक अंग विश्लेषण
२. शारीरिक ज्ञान
३. व्यवहारात्मकता से मापा जा सकता है।
इन सब में व्यवहार की सबसे अधिक विकासात्मक स्तर एवं विकासात्मक शक्तियों को व्यक्त करने का माध्यम है।

ई.वी हरलॉक के अनुसार:- विकास का अर्थ परिवर्तनों की गति श्रृंखला जो परिपक्वता और अनुभव के परिणाम स्वरूप सुव्यवस्थित और सुसंगठित ढंग से गठित होती है।
अतः विकास में शामिल है-
१. वृद्धि.
२. क्षमता
३. परिपक्वता
४. वातावरण के साथ अतःक्रिया।

1. विकास में विस्तृत और व्यापक शब्द है इसमें वृद्धि शामिल हैं वृद्धि विकास का एक भाग है विकास शारीरिक, बौद्धिक संवेगात्मक, सामाजिक नैतिक और आध्यात्मिक हो सकता है।

2. विकास निरंतर और जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है शिशु के जन्म से आरंभ होता है और मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है।

3. शरीर और विकास में परिवर्तन: विकास शरीर के विभिन्न अंगों और संपूर्ण रूप से व्यवहार में परिवर्तनों से संबंधित हैं।

4. परिणात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तन:- विकास का तात्पर्य परिणात्मक और गुणात्मक परिवर्तनों से हैं यह संरचना स्वरूप आकार के साथ-साथ कार्य में होने वाले सुधार से संबंधित हैं।

5. व्यवहार में सुधार: विकास का अर्थ है व्यवहार में सुधार अर्थात् शारीरिक बौद्धिक संवेगात्मक या नैतिक व्यवहार में सुधार। इससे कुशलता प्रभावित होती है। विकास जीवन भर सुव्यवस्थित और सुसंगत ढंग से होने वाले परिवर्तनों की प्रगतिशील सिंगला के रूप में परिभाषित किया गया है।

फ्रैंक के अनुसार : समय के दृष्टि से व्यक्ति में जो परिवर्तन दृष्टिगत होते हैं वह विकास कहलाते हैं।

सी. ई. स्किनर के अनुसार: विकास और उसके वातावरण की अंत: क्रिया का प्रतिफल है।

विकास की अवस्थाएं (stages of development)

विकास की अवस्था को विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग प्रकार से मनुष्य के अवस्थाओं को विभाजित करने का प्रयास किए हैं तो चलिए देखते हैं कि विभिन्न विद्वानों द्वारा विकास की अवस्थाओं का विभाजन।

भारत में मनुष्य जीवन को निम्नलिखि सात अवस्थाओं में विभाजित किया है-

१. गर्भावस्था:-गर्भाधान से जन्म तक
२. शैशवावस्था:- जन्म से 5 वर्ष तक
३. बाल्यावस्था:-5 वर्ष से 12 वर्ष तक
४. किशोरावस्था:-12 वर्ष से 18 वर्ष तक
५. युवावस्था:-18 वर्ष से 25 वर्ष तक
६. प्रौढ़ावस्था:- 25 वर्ष से 55 वर्ष तक
७. वृद्धावस्था:-55 वर्ष से मृत्यु तक

हरलॉक के अनुसार विकास की अवस्थाएं

१. गर्भावस्था:-जन्म से पूर्व
२. प्रारंभिक शैशवावस्था:-जन्म से 14 दिन तक
३. उत्तर शैशवावस्था:-14 से 2 वर्ष तक
४. बाल्यावस्था:-2 से 11 वर्ष तक
५. प्रारंभिक किशोरावस्था:-11 से 13 वर्ष तक
६. किशोरावस्था:-13 से 17 वर्ष तक
७. उत्तर किशोरावस्था:-17 से 21 वर्ष तक

रोस के अनुसार विकास की अवस्थाएं

१. शैशवावस्था:-1 से 3 वर्ष तक
२. प्रारंभिक बाल्यावस्था:-3 से 6 वर्ष तक
३. उत्तर बाल्यावस्था:-6 से 12 वर्ष तक
४. किशोरावस्था:-12 से 18 वर्ष तक

कॉलेसनिक ने विकास की अवस्थाओं को 8 वर्गों में विभाजित किया है:-

१. पूर्व जन्म काल:-गर्भावस्था से जन्म तक
२. नव शैशव काल:- जन्म से 3 4 सप्ताह तक
३. आरंभिक शैशवावस्था:- 1 माह से 15 माह तक
४. उत्तर शैशवास्था:- 15 माह से 30 माह तक
५. पूर्व बाल्यावस्था:- 2.5वर्ष से 5 वर्ष तक
६. मध्य बाल्यावस्था:- 5 वर्ष से 9 वर्ष तक
७. उत्तर बाल्यावस्था:- 9 वर्ष से 12 वर्ष तक
८. किशोरावस्था:- 12 वर्ष से 21 वर्ष तक

सैले मानव विकास का अध्ययन केवल तीन अवस्थाओं में करने के पक्ष में हैं:-

१. शैशवावस्था:-1 वर्ष से 5 वर्ष तक
२. बाल्यावस्था:-5 वर्ष से 12 वर्ष तक
३. किशोरावस्था:-12 वर्ष से 18 वर्ष तक

कोल के अनुसार विकास की अवस्थाओं का वर्गीकरण –

१. शैशवावस्था:- जन्म से 2 वर्ष तक
२. प्रारंभिक बाल्यावस्था:-2 से 5 वर्ष तक
३. मध्य बाल्यावस्था:- लड़का: 6 से 12 वर्ष तक
लड़की : 6 से 10 वर्ष तक
४. पूर्व किशोरावस्था/उत्तर बाल्यावस्था:- लड़का 13 से 14 वर्ष तक
लड़की 11 से 12 वर्ष तक
५. प्रारंभिक किशोरावस्था: लड़का 15 से 16 वर्ष तक
लड़की 12 से 14 वर्ष तक
६. मध्य किशोरावस्था: लड़का 17 से 18 वर्ष तक
लड़की 15 से 17 वर्ष तक
७. उत्तर किशोरावस्था: लड़का 19 से 20 वर्ष तक
लड़की 18 से 20 वर्ष तक
८.प्रारंभिक प्रौढ़ावस्था: 21 से 34 वर्ष तक
९. मध्य प्रौढ़ावस्था:- 35 से 49 वर्ष तक
१०. उत्तर प्रौढ़ावस्था:- 50 से 64 वर्ष तक
११. प्रारंभिक वृद्धावस्था:- 65 से 74 वर्ष तक
१२. वृद्धावस्था:-75 वर्ष से आगे

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