प्रेमचंद का जीवन परिचय, munshi premchand ka jeevan parichay, munshi premchand biography


मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय,munshi premchand ka jeevan parichay, munshi premchand biography,munshi premchand ki rachnaye, munshi premchand ki kahani, munshi premchand upanyas

नूतन युग का सूत्रपात करने वाले प्रेमचंद जी हिंदी कथा साहित्य के चक्रवर्ती सम्राट हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य को ना केवल युगान्तकारी मोड़ दिया अपितु उसे यथार्थ से जोड़कर सोद्देश्यता प्रदान की, उस के माध्यम से सर्वसाधारण जनता के दुख दर्द संवेदना एवं संघर्ष को नई वाणी दी, नया आर्ट्स दिया।

मुंशी प्रेमचंद का जन्मतिथि एवं परिवारिक जीवन (munshi premchand biography)

प्रेमचंद जी का जन्म उत्तर प्रदेश में वाराणसी जिले के लमही गांव में एक कायस्थ परिवार में सावन बंदी 10 सम्वत् 1937 शनिवार तदनुसार 31 जुलाई सन 1880 ईस्वी में हुआ था। उनके पिता का नाम अजायब लाल और माता का नाम आनंदी था। पिता ने उनका नाम धनपत राय और ताऊ ने नवाब राय रखा था सन् 1910 ईस्वी में सोजेवतन कहानी संग्रह पर जब अंग्रेजी सरकार का प्रकोप हुआ तो उनका नाम प्रेमचंद हो गया। यह नाम जमाना उर्दू पत्र के संपादक मुंशी दया नारायण निगम द्वारा सुझाया गया था।
प्रेमचंद जी के दो विवाह हुए थे। उनका पहला विवाह 15 वर्ष की आयु में एक ऐसी स्त्री से हुआ जो उम्र में उनसे ना केवल बड़ी थी अपितु काली, कुरूप, भद्दी, कूहड़ और थुलथुल थी, जिसे देखते ही उनको उसकी सूरत से घृणा हो गई। दूसरा विवाह बाल विधवा शिवरानी देवी के साथ सन् 1906 ईसवी में हुआ था। शिवरानी देवी से उन्हें संतान, संतोष, सुख, स्नेह और सहयोग सब कुछ मिला। दूसरी पत्नी से तीन संतान पैदा हुए जिसमें दो बेटे तथा एक बेटी हुई। दो बेटों के नाम अमृत राय और श्रीपात राय और बेटी का नाम कमला देवी

प्रेमचंद का शिक्षा एवं व्यवसाय Education of premchand):

इनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू व फारसी से हुआ था। हाईस्कूल परीक्षा पास करने के बाद वह एक स्कूल में ₹20 मासिक पर अध्यापक हो गए। बड़ी कठिनाई से किसी प्रकार उन्होंने b.a. पास कर लिया। इसके बाद स्कूलों के सब डिप्टी इंस्पेक्टर हो गये, किंतु स्वतंत्र प्रकृति के होने के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी। प्रारंभ में वे उर्दू में लिखते थे और उर्दू क्षेत्र में उनका काफी सम्मान था बाद में हिंदी में लिखने लगे पहले उन्होंने मर्यादा और मधुरी पत्रिकाओं का संपादन किया और फिर हंस और जागरण का उन्होंने कुछ दिनों तक सिनेमा के क्षेत्र में भी पटकथा लिखने का कार्य किया था पर उसमें इन्हें सफलता न मिल सकी।

मुंशी प्रेमचंद जी स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की उन्होंने पहले शिक्षण का कार्य किया तथा बाद में में शिक्षा विभाग में निरीक्षक के पद पर नियुक्त हुए। उन्होंने हंस नाम साहित्यिक पत्र का संपादन भी कई वर्षों तक किया। उनका देहांत सन् 8 अक्टूबर 1936 ईस्वी में मात्रा 56 वर्ष की आयु में हो गई। उनके देहावसान के दृश्य का वर्णन उनके पुत्र अमृत राय ने इस प्रकार किया है-
“अर्थी बनी 11:00 बजते बजते हैं 20-25 लोग किसी गुमनाम आदमी की लाश लेकर मणिकर्णिका घाट की ओर चले। रास्ते में एक राह चलते ने दूसरों से पूछा के रहल? दूसरी ने जवाब दिया कोई मास्टर था! बोलपुर में रविंद्र नाथ ने धीमे से कहा एक रतन मिला था तुमको, तुमने खो दिया”

प्रेमचंद की रचनाएं (munshi premchand ki rachnaye)

उनकी प्रमुख कृतियां हैं मानसरोवर (आठ भाग), गुप्त धन (2 भाग), कहानी संग्रह; निर्मला, सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, गोदान (उपन्यास) कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी (नाटक); विविध प्रसंग (साहित्यिक और राजनीतिक निबंधों का संग्रह); कुछ विचार (साहित्यिक निबंध) उन्होंने माधुरी हंस

 

munshi premchand ki kahaniyan, मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ और उपन्यास

प्रेमचंद की प्रमुख कहानी: जिस प्रकार प्रेमचंद इस काल के उपन्यास-साहित्य के एकच्छत्र सम्राट् बने रहे, उसी प्रकार कहानी के क्षेत्र में भी उनका स्थान अद्वितीय रहा। इस अवधि में उन्होंने लगभग दो सौ कहानियां लिखीं।

‘बलिदान’ (1918), ‘आत्माराम’ (1920), सौत (1920) ‘बूढ़ी काकी’ (1921), ‘विचित्र होली’ (1921), ‘गृहदाह’ (1922), ‘हार की जीत’ (1922), ‘परीक्षा’ (1923), ‘आपबीती’ (1923), ‘उद्धार’ (1924), ‘सवा सेर गेहूं’ (1924), ‘शतरंज के खिलाड़ी’ (1925), ‘माता का हृदय’ (1925), ‘कजाकी’ (1926), ‘सुजान भगत’ (1927), ‘इस्तीफा’ (1928), ‘अलग्योझा’ (1929), ‘पूस की रात’ (1930), ‘तावान’ (1931), ‘होली का उपहार’ (1931), ‘ठाकुर का कुआं’ (1932), ‘बेटों वाली विधवा’ (1932), ‘ईदगाह’ (1933), ‘नशा’ (1934), ‘बड़े भाई साहब’ (1934), ‘कफ़न’ (1936), नमक का दरोगा, पूस की रात, पंच परमेश्वर।

कहानी संग्रह: सोजेवतन, प्रेमद्वादशी, प्रेमपूर्णिमा, प्रेमपचीसी, प्रेमप्रसून, सप्तसरोज, मानसरोवर, नवनिधि, मानसरोवर (8 भाग) आदि।
प्रेमचंद की कहानियों की यह विशेषता है-
१. श्रेष्ठ कथानक
२. स्वाभाविक चरित्रांकन
३. उत्कृष्ट संवाद
४. वातावरण का सजीव चित्रण
५. व्यवहारिक भाषा शैली
६. आदर्शोंन्मुख यथार्थवाद

munshi premchand upanyas

प्रेमचंद की प्रमुख उपन्यास: सेवासदन, प्रेमा, दो साखियों का विवाह (1907), वरदान (1921) (जो जलवए ईसार का उर्दू से हिंदी रूपांतर है), प्रेमाश्रम (1922), रंगभूमि (1925), कायाकल्प (1926), निर्मला (1927), (हमखुर्मा वह हमसवाब के पूर्व प्रकाशित हिंदी रूपांतर प्रेमा अर्थात दो सखियों का विवाह को परिष्कृत कर उन्होंने ‘प्रतिज्ञा’ (1929) प्रकाशित किया, गबन (1931), कर्मभूमि (1933), गोदान(1935)। सेवासदन, प्रेमाश्रम और रंगभूमि क्रमशः ‘बाज़ारे-हुस्न, गोशए-आफ़ियत और चौगाने-हस्ती’ नाम से उर्दू में लिखे गए थे किंतु प्रकाशित पहले यह हिंदी में ही हुए वैसे मूल रूप से हिंदी में लिखित प्रेमचंद का पहला उपन्यास ‘कायाकल्प’ है। इसके बाद उन्होंने सभी उपन्यासों की रचना हिंदी में ही की। प्रेमचंद के अंतिम उपन्यास का नाम मंगलसूत्र था जोकि अधूरा था।

प्रेमचंद की नाटक :

मुंशी प्रेमचंद जी के तीन प्रमुख नाटक है-

संग्राम (1922), कर्बला, बलि की वेदी।

प्रेमचंद का निबंध:

कहानी कला

प्रेमचंद की साहित्यिक विशेषताएं

प्रेमचंद हिंदी के अन्यतम कलाकार हैं उन्होंने अपने साहित्य में किसानों, दलितों, नारियों की वेदना और वर्ण व्यवस्था की कुरीतियों का मार्मिक चित्रण किया है। वे साहित्य को स्वांत: सुखाय ना मानकर सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन मानते थे। वे एक ऐसे साहित्यकार थे जो समाज की वास्तविक स्थिति को गहरे दृष्टि से देखने की शक्ति रखते थे। उन्होंने समाज सुधारा और राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत अनेक उपन्यासों एवं कहानियों की रचना की। कथा संगठन चरित्र चित्रण कथोकथन आदि की दृष्टि से उनकी रचनाएं बेजोड़ है।

 

प्रेमचंद की भाषा शैली

उनकी भाषा बहुत सजीव मुहावरेदार और बोलचाल के निकट है। जिसमें उर्दू की स्वच्छंदता गति और मुहावरों के साथ संस्कृत की भावमयी पदावली का सुंदर प्रयोग है। भावात्मक क्षणों में उनकी भाषा काव्यात्मक हो जाती है तथा तत्सम शब्दों की प्रधानता हो जाती है। जैसे वही हरा भरा मैदान था वहीं सुनहरी चांदनी एक नि: शब्द संगीत की भांति प्रकृति पर छाई हुई थी। वही मित्र समाज था, वही मनोरंजन के समान थे। मगर जहां हास्य कि ध्वनि थी। वहां करुण क्रंदन और अश्रुप्रवाह था।
इनकी भाषा जीवन को आकार प्रदान करने में सफल हैं। उन्होंने पात्रानुकूल भाषा का प्रयोग किया है।

 

निष्कर्ष

निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि हिंदी को लोकप्रिय बनाने में प्रेमचंद का विशेष योगदान है। प्रेमचंद एक महान कलाकार, विचारक और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी का गौरव बढ़ाया है। उन्होंने दु:खी ग्रामीणों का सुंदर चित्रण और शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व किया है। वह हिंदी के क्षेत्र में श्रेष्ठ कहानीकार और उपन्यास के क्षेत्र में उपन्यास सम्राट कहे जाते हैं साथ ही प्रेमचंद को कलम का सिपाही भी कहा जाता है।

महत्वपूर्ण प्रश्न:

प्र.१. प्रेमचंद का जन्म कहां हुआ था?

उत्तर: प्रेमचंद का जन्म उत्तर प्रदेश के लम्ही गांव में हुआ था।

प्र.२. प्रेमचंद का जन्म और मृत्यु कब हुई?

उत्तर: प्रेमचंद का जन्म 10 सम्वत् 1937 शनिवार तदनुसार 31 जुलाई सन् 1880 ईस्वी में  हुआ था और मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 ईस्वी में मात्रा 56 वर्ष की आयु में हो गई।

प्र.३. प्रेमचंद के पिता कौन थे?

उत्तर: प्रेमचंद के पिता अजायब लाल थे।

प्र.४. प्रेमचंद की माता का क्या नाम था?

उत्तर: प्रेमचंद की माता का नाम आनंदी देवी था।

प्र.५. मुंशी प्रेमचंद के बचपन का क्या नाम था?

उत्तर: मुंशी प्रेमचंद के बचपन का  नाम धनपत राय श्रीवास्तव  था।

प्र.६. मुंशी प्रेमचंद की कितनी पत्नियां थी?

उत्तर: मुंशी प्रेमचंद की दो पत्नियां थी।

प्र.७. मुंशी प्रेमचंद की दूसरी पत्नी का क्या नाम था?

उत्तर: मुंशी प्रेमचंद की दूसरी पत्नी का नाम शिवरानी देवी था।

प्र.८. मुंशी प्रेमचंद के कितने बच्चे थे?

उत्तर:  मुंशी प्रेमचंद के दो बेटे तथा एक बेटी थी। दो बेटों के नाम अमृत राय और श्रीपात राय और बेटी का नाम कमला देवी था।

प्र.९. प्रेमचंद ने कौन-कौन सी पत्रिकाओं का संपादन किया?

उत्तर: प्रेमचंद ने हंस, जागरण, मर्यादा और माधुरी पत्रिकाओं का संपादन किया।

प्र.१०. प्रेमचंद की 1930 के बाद की कहानियां किस प्रकार की थी?

उत्तर: इनकी 1930 के बाद कहानियों में सच्चाई को उसके नग्रतम रूप में देखने का प्रयास नहीं, बल्कि उसके उस पहलू को भी पकड़ने की चेष्टा की गयी है जिसकी और साधारणतः दृष्टि नहीं जाती। इस दृष्टि से पूस की रात, ताइवान, कफ़न प्रेमचंद की ही नहीं हिंदी की बेजोड़ कहानियां है।

प्र.११. प्रेमचंद की कहानियां किससे संबंध रहती हैं?

उत्तर: प्रेमचंद की कहानियां ग्रामीण जीवन से अधिक संबद्ध है। कस्बाई जिंदगी, सत्याग्रह आंदोलन, जमीदारों, साहूकारों, कलर्को आदि की समस्याओं और परिवेश से भी हिंदी कहानियां संबद्ध है।

प्र.१२.’वरदान’ किसका रुपान्तरण है? यह कब प्रकाशित हुआ?

उत्तर: वरदान उर्दू उपन्यास ‘जलवए ईसार’ का रुपान्तरण है जो 1921 ई० में प्रकाशित हुआ।

प्र.१३. प्रेमचंद द्वारा लिखित उपन्यास ‘प्रतिज्ञा’ किसका नया रूप है?

उत्तर: ‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास उर्दू के हमखुमी व हमसवाब के पूर्व प्रकाशित रुपान्तर ‘प्रेमा अर्थात दो सखियों का विवाह’ का नया रूप है। यह प्रेमचन्द का उपन्यास है।

प्र.१४.मूल रूप से लिखित प्रेमचन्द का पहला उपन्यास कौनसा है?

उत्तर: कायाकल्प ।

प्र.१५. प्रेमचन्द के उपन्यास की विशेषता क्या है?

उत्तर: इनके उपन्यासें ने कथा साहित्य को मनोरंजन के स्तर से उठाकर जीवन के सार्थक रुप से जोड़ने का काम किया है। पराधीनता, जमीदारी, पूंजीपति, किसानों का शोषण, निर्धनता, अशिक्षा, समाज में नारी की स्थिति, वेश्याओं की जिन्दगी, सांप्रदायिक वैमनस्य, अस्पृश्यता आदि उपन्यास के आधार थे।

Leave a Comment