अधिगम स्थानांतरण के सिद्धांत transfer of learning theory in hindi

अधिगम स्थानांतरण के सिद्धांत(adhigam sthanantaran ke siddhant)

१. समरूप तथ्यों का सिद्धांत:

इस सिद्धांत के मुख्य प्रतिपादकों में थॉनडाइक का नाम सबसे ऊपर है उनके बाद वुडवर्थ ने भी इस सिद्धांत का समर्थन किया इनके अनुसार एक विषय का अध्ययन दूसरे विषय के अध्ययन में तवे सहायक सिद्ध होता है जबकि इन दोनों विषयों में जितनी अधिक समानता होगी। स्थानांतरण भी उतना ही अधिक होगा। उदाहरण के लिए साइकिल चलाने वाले को मोटरसाइकिल चलाने इसलिए जल्दी आ जाती है क्योंकि दोनों में संतुलन प्रक्रिया समान है। ठीक इसी प्रकार बैडमिंटन के खेल का ज्ञान टेबल टेनिस को खेलने में सहायक सिद्ध होता है। इसी प्रकार गणित के क्षेत्र में किए जाने वाले अध्ययन की भौतिक शास्त्र में स्थानांतरण होने की संभावनाएं उतनी ही अधिक होगी जितने की दोनों विषयों में चिह्न, सूत्र, समीकरण और गणनाओं में रूप समान तत्व उपस्थित होंगे।

इस प्रकार सीखने से संबंधित दो अनुभव में विषय सामग्री कौशल अभिवृति सीखने की विधि उद्देश्य आदतों तथा रूचियों के रूप में जितनी अधिक समानता पायी जाती हैं। उनमें स्थानांतरण की संभावना उतनी ही अधिक देखने को मिलती है।

 

२. समानीकरण का सिद्धांत:

इस सिद्धांत के प्रतिपादक जड थे। उनके अनुसार जब कोई व्यक्ति अपने किसी कार्य की ज्ञान या अनुभव से कोई समानीय यह सिद्धांत निकाल लेता है तो वह दूसरी परिस्थिति में उसका प्रयोग आसानी से कर सकता है। उदाहरण के लिए कश्मीर में रहने वाले हिंदू मुसलमान सभी मांस मदिरा का प्रयोग करते ही हैं। क्योंकि दोनों ही सर्दी में से बचाव करते हैं। इस संबंध में समानीय सिद्धांत यह हुआ कि जहां सर्दी अधिक पड़ेगी वहां के लोग अधिकांशतः मांसाहारी होंगे। अतः इस सामान्य सिद्धांत के आधार पर हिमाचल या दूसरे ठंडे प्रदेशों में रहने वाले लोगों के खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है।

 

३. दो तत्वों का सिद्धांत:

इस सिद्धांत के प्रतिपादक स्पीयर मैन थे। किसने बताया कि बुद्धि दो प्रकार की होती हैं सामान्य तथा विशिष्ट आमतौर पर जीवन में सामान्य बुद्धि का ही उपयोग किया जाता है तथा जहां तक विशिष्ट बुद्धि का प्रश्न है वह हर व्यक्ति में विभिन्न प्रकार की होती है उनके अनुसार अंतरण विशिष्ट योग्यता में ना होकर सामान्य योग्यता में होता है। उनका विश्वास है कि किसी कार्य को करने में सामान्य तथा विशिष्ट दोनों ही योग्यता का स्थान रहता है। गणित, विज्ञान, भाषा, समाजिक विषय प्रायः सामान्य योग्यता में वृद्धि करते हैं जबकि संगीत, कला आदि से विशिष्ट योग्यता का विकास होता है समान योग्यता का विकास प्रायः सभी कार्यों में थोड़ा या अधिक होता है अतः स्थानांतरण की दृष्टि से इसका महत्व अधिक है।

 

४. आदर्शों का सिद्धांत:

इस सिद्धांत के प्रतिपादक बागले हैं। उनके अनुसार अंतरण का संबंध इतना वस्तुओं या बातों से नहीं होता जितना कि उस बात को अंतरित करने वाले व्यक्ति के आदर्शों से होता है। इसलिए व्यक्ति अपने अनुभव पर आधारित चिंतन मूल्यों एवं अभिवृत्ति ओं का अंतरण करता है जो उसके व्यक्तित्व और जीवन शैली का विभिन्न अंग बन चुके होते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी काम को सफाई से करना सीख लेता है तो वह जिस काम को भी हाथ लगाता है उसे सफाई से ही करता है। इसी प्रकार स्कूल में छात्र के समय की पाबंदी उसे कक्षा तक ही सीमित नहीं रखती बल्कि स्कूल छोड़ने के बाद उसके जीवन के दूसरे पक्षों पर भी अंतरित हो जाती हैं। एक फौजी केवल अपनी यूनिट में है अनुशासन का पालन नहीं करता बल्कि वह घर व समाज में अनुशासन का पक्षधर होता है। यह सिद्धांत चारित्रिक व नैतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं।

 

५. मानसिक शक्तियों का सिद्धांत:

इस सिद्धांत के अनुसार मास्टिक्स में विभिन्न प्रकार की शक्तियां होती हैं जैसे तर्कशक्ति विचार शक्ति कल्पना शक्ति स्मरण शक्ति निर्णय शक्ति आदि। शक्ति मनोविज्ञान के अनुसार इस सभी शक्तियां विशेष प्रकार की होती हैं तथा स्वतंत्र रूप से कार्य करता है अतः इन्हें स्वतंत्र रूप से शक्तिशाली बनाया जाना चाहिए यदि किसी विषय या कौशल में शिक्षण प्रशिक्षण से इन शक्तियों का विकास कर दिया जाता है तो ये किसी अन्य विभाग या कौशल के सीखने में सहायक होती हैं।

इस सिद्धांत के अनुसार सीखने के स्थानांतरण में विषय वस्तु का नहीं इन मानसिक शक्तियों का स्थानांतरण होता है उदाहरण के लिए यदि गणित के शिक्षण से बालकों में तर्कशक्ति का विकास कर दिया जाता है तो या तर्क अन्य विषयों के अध्ययन में सहायक होती है। परंतु वर्तमान में शक्ति मनोविज्ञान में विश्वास नहीं किया जाता अब मनोवैज्ञानिक या नहीं मानते के मनुष्य के या मानसिक शक्तियां एक दूसरे से अलग है। और किसी विषय के शिक्षण अथवा कौशल से प्रशिक्षण से किसी विशेष मानसिक शक्तियों या शक्तियों का विकास होता है। अब तो यह माना जाता है कि मन की सभी शक्तियां एक साथ क्रियाशील होती है। यही कारण है कि अधिगम के स्थानांतरण के संदर्भ में इस सिद्धांत को मान्यता नहीं दी जाती।

 

६. पूर्णकार्यवाद का सिद्धांत:

इस सिद्धांत का प्रतिपादन गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिक ने किया है जिनमें कोहलर मुख्य हैं गैस्टाल्ट मनोवैज्ञानिक के अनुसार किसी भी विषय अथवा कौशल को सीखने में अपनी सूझ का प्रयोग करता है और किसी भी विषय अथवा कौशल के सीखने में उसके इसी सूझ का विकास होता है उसके स्वरूप में विकास होता है। और उसकी गति विकसित होती है। इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार किसी दूसरे विषय अथवा कौशल के सीखने में या शूज ही स्थानांतरित होता है तथ्यों का ज्ञान अथवा कौशल विशेष के तकनीकी नहीं। यहां सूझ का थोड़े व्यापक रूप में प्रयोग किया गया है। इसमें तथ्यों को अर्थपूर्ण ढंग से समझने की शक्ति निहित है। कोहलर ने वनमानुषों पर किए गए प्रयोगों में पाया कि एक बार उसमें समस्या समाधान की सूझ उत्पन्न होने पर व अन्य समस्याओं पर समाधान अपेक्षाकृत कम समय में सका।

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