कृष्ण की चेतावनी, krishna ki chetavani kavita question answer class 4

कृष्ण की चेतावनी कविता का अर्थ krishna ki chetavani kavita ka arth,krishna ki chetavani kavita ka bhavarth,

मैत्री की राह बताने को, 

सबको सुमार्ग पर लाने को,

दुर्योधन को समझाने को, 

भीषण विध्वंस बचाने को।

भगवान हस्तिनापुर आए, 

पांडव का संदेशा लाए।

शब्दार्थ- मैत्री = मित्रता। राह = मार्ग। सुमार्ग- सही रास्ता। भीषण- भयंकर। विध्वंस = विनाश।

संदर्भ:- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘अभिप्रेरणा हिन्दी पाठमाला भाग 4’ से संकलित पाठ ‘श्रीकृष्ण की चेतावनी’ से लिया गया है इसके रचयिता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।

प्रसंग-  पांडवों ने श्रीकृष्ण को अपना दूत बनाकर हस्तिनापुर दुर्योधन के पास भेजा और अपना राज्य उससे माँगा।

व्याख्या :- पांडवों के दूत बनकर श्रीकृष्ण हस्तिनापुर आये और दुर्योधन के सामने मित्रता का प्रस्ताव रखा। उन्होंने सभी को सुमार्ग दिखाया और दुर्योधन को समझाया कि वह पांडवों को उनका राज्य लौटाकर अपना न्यायप्रियता का परिचय दे। इस प्रकार युद्ध के विनाश से बचा जा सकेगा। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने पांडवों का संदेश दुर्योधन तक पहुँचाया।

 

दो न्याय अगर तो आधा दो,

पर इसमें भी यदि बाधा हो, 

तो दे दो केवल पाँच ग्राम, 

रक्खो अपनी धरती तमाम 

हम वही खुशी से खायेंगे, 

परिजन पर असि न उठाएंगे। 

शब्दार्थ- न्याय – इंसाफ, फ़ैसला। बाधा- दिक्कत। पांच ग्राम- पांच गांव। रक्खो- रंगों। तमाम- सारा, पूरा। परिजन = परिवार के लोग।  असि न उठाएंगे- तलवार नहीं उठाएंगे।

संदर्भ:- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘अभिप्रेरणा हिन्दी पाठमाला भाग 4’ से संकलित पाठ ‘श्रीकृष्ण की चेतावनी’ से लिया गया है इसके रचयिता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।

प्रसंग- दुर्योधन के सामने पाण्डवों के दूत श्रीकृष्ण ने उनको आधा राज्य अथवा पाँच गाँव देने का प्रस्ताव रखा। दुर्योधन ने इसको स्वीकार नहीं किया।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि पांडवों के दूत श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि वह न्याय के अनुसार पाण्डवों को हस्तिनापुर का आधा राज्य दे दे। यदि आधा राज्य देने में भी किसी प्रकार की आपत्ति हो तो उनको केवल पाँच गाँव ही दे दे। पाण्डव इतने से ही संतुष्ट हो जायेंगे। दुर्योधन संपूर्ण हस्तिनापुर पर शासन करता रहे है। पांडव तो केवल पाँच गाँव पाकर ही खुश रहेंगे। वे अपना हक पाने के लिए अपने परिवार के लोगों अर्थात् कौरवों पर तलवार नहीं उठायेंगे। अर्थात उनसे युद्ध नहीं करेंगे। वे पांच गांव पाकर ही अपना जीवन खुशी से व्यतीत करेंगे।

 

दुर्योधन वह भी दे न सका, 

आशिष समाज की ले न सका, 

उलटे, हरि को बाँधने चला, 

जो था असाध्य, साधने चला। 

जब नाश मनुज पर छाता है, 

पहले विवेक मर जाता है।

शब्दार्थ- आशिष = आशीर्वाद। असाध्य = जिसे कार्य को पूरा करना संभव न हो, अकरणीय। साधने – निशाना लगाना। नाश- ख़त्म। मनुज- मनुष्य। विवेक – अच्छे बुरे की पहचान, उचित-अनुचित का विचार।

संदर्भ:- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘अभिप्रेरणा हिन्दी पाठमाला भाग 4’ से संकलित पाठ ‘श्रीकृष्ण की चेतावनी’ से लिया गया है इसके रचयिता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।

प्रसंग- जब दुर्योधन के पास श्रीकृष्ण पांडवों का प्रस्तावना लेकर आए तो दुर्योधन उनके प्रस्तावना को स्वीकार नहीं करते हैं और उल्टा श्री कृष्ण को बंदी बनाने का प्रयास करते हैं।

व्याख्या:- दुर्योधन को श्रीकृष्ण द्वारा लाया गया प्रस्ताव स्वीकार नहीं हुआ। ऐसा करने पर उसे न्याय का पक्ष लेने के लिए समाज का आशीर्वाद मिलता। पर वह इससे भी वंचित रह गया। इसके विपरीत उसने श्रीकृष्ण को बन्धन में बाँधने का प्रयत्न किया। जो कार्य उसकी सामर्थ्य से बाहर था, वह उसी को करने लगा। श्रीकृष्ण को बन्धन में बाँधना दुर्योधन के वश की बात न थी। जब मनुष्य के बुरे दिन आते हैं तो उचित और अनुचित क्या है, यह विचार करने की शक्ति या मनुष्य की शक्ति नष्ट हो जाती है।

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