सूरदास के पद क्लास 8 व्याख्या प्रश्न उत्तर, surdas ke pad question answers class 8

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आज हम वेस्ट बंगाल बोर्ड के कक्षा 8 के पाठ 1 सूरदास के पद का व्याख्या सहित सभी प्रश्नों का उत्तर इस आर्टिकल में पढ़ने जा रहे हैं।

अब कैं राखि लेहु भगवान।
हौं अनाथ बैठ्यो दुम-डरिया, पारधि साधै बान।
ताकै डर हौं भाज्यौ चाहत, ऊपर ढुक्यो सचान ।
दुहूँ भाँति दुख भयौ आनि यह, कौन उबारै प्रान।
सुमिरत ही अही डस्यौ पारधि, कर छूट्यौ संधान ।
सूरदास सर लग्यौ सचानहि, जय जय कृपानिधान।।

शब्दार्थ

राखि लेहु – बचा लिजिए। अनाथ – असहाय। द्रुम डरिया – वृक्ष की डाल पर । पारधि – शिकारी, बहेलिया। साधे- साधना। बान – तीर, वाण। ताकै – जिसके। भाज्यौ – भागना। सचान – बाज। दुहूं भांति – दोनों तरफ से। उबारै – उध्दार करना। सुमिरत- याद करते ही। अही – सांप। डस्यौ – डंसना। संधान – तीर।

संदर्भ:- प्रस्तुत पजामा रे पाठ्यपुस्तक साहित्य मेला के ” सूर के पद” नामक पाठ से लिया गया है, जिसके कवि सूरदास जी है।

प्रसंग: इस पद में कवि ने ईश्वर के महिमा का गुणगान किया है।

व्याख्या : प्रस्तुत पद में सूरदास जी ने एक कबूतर(मनुष्य) के माध्यम से ईश्वर की महत्ता का वर्णन किया है। शिकारी और बाज के बीच फँसा कबूतर ईश्वर से अपने प्राणों की रक्षा करने के  लिए ईश्वर से प्रार्थना करते  हुए कहता है कि हे ईश्वर! इस बार मेरे प्राणों की रक्षा कर लो। मैं बेसहारा होकर अपने प्राण बचाने के लिए पेड़ की डाल पर पत्तों के बीच छिपकर बैठा हूँ क्योंकि बहेलिया(शिकारी) मुझे मारने के लिए तीर साधे हुए है। इस बहेलिया से बचकर मैं भागना चाहता हूँ, लेकिन मेरे ऊपर बाज पक्षी मेरी खोज में है। इस प्रकार एक ओर बहेलिया मेरा प्राण लेने के लिए निशाना साधे है तो दूसरी ओर बाज  भी मेरे प्राण लेने के लिए तैयार है। मैं दोनों ओर से भारी मुसीबत में फँसा हूँ। मुझे कहीं से भी कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है। हे ईश्वर! अब आप ही बताइए मेरे प्राण की रक्षा कौन करेगा? इतना कहते ही पेड़ के खाई से एक साँप निकला और देखते ही देखते उसने बहेलिया के पाँव में डस लिया । बहेलिया को डसते ही वह जमीन पर गिर गया और उसके हाथ से तीर छूट गया और वह तीर सीधे जाकर बाज को लगा, जिससे बाज भी मर गया। जिससे  मुसीबत में फंसे कबूतर की जान बच गई। सूरदास कहते हैं कि जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान होता वही सबकी रक्षा करते हैं। इस पद के माध्यम से सूरदास स्पष्ट करते हैं कि ईश्वर के केवल स्मरण मात्र से ही सांसारिक माया जाल और निर्गुण योगसाधना के बाधाओं से मुक्ति मिलती है तथा ईश्वर की सरस भक्ति प्राप्त होती है।

 

छाँड़ि मन हरि बिमुखन को संग
जाके संग कुबुद्धि उपजै, परत भजन में भंग।
काम क्रोध मद लोभ मोह में, निसि दिन रहत उमंग।
कहा भयो पय पान कराये, बिष नहिं तपत भुजंग।
कागहि कहा कपूर खवाये, स्वान न्हवाये गंग।
खर को कहा अरगजा लेपन, मरकंत भूषण अंग।
पाहन पतित बान नहिं भेदत, रीतो करत निषंग।
सूरदास ख़ल कारी कामरी, चढ़े न दूजो रंग ।। “

शब्दार्थ:-
छांड़ि – छोड़ दो। हरि विमुखन – ईश्वर का विरोधी। जाके संग – जिसके संग। कुबुध्दि – गलत बुध्दि। उपजै – जन्म लेती। निसि दिन – रात दिन। स्वान – कुत्ता। न्हवाये – नहलाने से। खर – गद्हा । अरगजा लेपन – चदन का लेप। मरकत – बंदर। पाहन – पत्थर। रीतो – खाली करना। खल कारी कामरी – काला रंग का कागज।
संदर्भ:- प्रस्तुत पजामा रे पाठ्यपुस्तक साहित्य मेला के ” सूर के पद” नामक पाठ से लिया गया है, जिसके कवि सूरदास जी है।
प्रसंग:- इस पद में कवि ने ईश्वर के विरोधी के साथ छोड़ देने की बात कही है।

व्याख्या : प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं कि हमें दुष्ट लोगों का साथ छोड़ देना चाहिए क्योंकि जो लोग ईश्वर की भक्ति से विमुख रहते हैं, उनके साथ रहने से मन में कुबुद्धि का जन्म होता है और ईश्वर की भक्ति में बाधा उत्पन्न होती है इसलिए हमें ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए। आगे सूरदास जी कहते हैं कि ऐसे लोग हमेशा काम, क्रोध, मद, मोह जैसे भौतिक तत्त्वों में लीन रहते हैं। उन्हें उसी में आनंद मिलता है। उन्हें ईश्वर और भक्ति का ज्ञान देकर कोई लाभ नहीं। सूरदास जी विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से अपनी बातों को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि साँप को चाहे जितना भी दूध पिलाया जाय, वह अपना विष नहीं त्यागता। ठीक उसी प्रकार कौवे को कपूर खिलाने से भी वह गंदगी खाना नहीं छोड़ता और कुत्ते को गंगा के पावन जल में स्नान कराने पर भी वह गंदे जगह के प्रति उसका मोह बना रहता है। गदहा के लिए चंदन का लेप और बंदर के लिए बहुमूल्य आभूषणों का कोई महत्व नहीं है।सूरदास कहते हैं कि पापियों का हृदय पत्थर के समान कठोर होता है, पत्थर पर चाहे जितना भी तीर चलाया जाय, उसको बेधा नहीं जा सकता, चाहे तीर से भरा तरकश खाली ही क्यों न हो जाय । इसी तरह पापियों के हृदय को समस्त मानवीय भावनाओं के द्वारा नहीं बदला जा सकता। सूरदास कहते हैं कि ऐसे दुष्ट लोग काले रंग की कम्बल की तरह होते हैं, जिस पर प्रेम, श्रद्धा और भक्ति का कोई दूसरा रंग नहीं चढ़ाया जा सकता।

 

जसुदा मदन गुपाल सोवाबें ।
देखि सयन गति त्रिभुवन कपै ईस बिरंचि भ्रमाचै ।
असित अरुन सित आलस लोचन उभय पलक परिआवै।
जनु रवि गल संकुचित कमल जुग निसि अलि उड़न न पावै ।।
स्वास उदर उरसति यौं मानौ दुग्ध सिंधु छबि पाबै ।
जरात नाभि सरोज प्रगट पद्मासन उतरि नाल पछितावै ।।
कर सिर तर करि स्याम मनोहर अलक अधिक सोभावै।
सूरदास मानी पन्नगपति प्रभु ऊपर फन छाबै ।

शब्दार्थ: 
जसुदा – यशोदा। मदन गुपाल – कृष्ण। सोवाबै – सुला रही। सयन गति- निद्रावस्था। त्रिभुवन- तीनों लोकों के स्वामी। कपै – कापना। विरंचि – विधाता। भ्रमावै – भय से। असित – बुरा, शीत भुक्त। लोचन – आंख। रवि – सूर्य। संकुचित- सिकुड़ना। अलि – भौरा। उरसति – ह्रदय। अलक – केश, लट। पन्नगपति – शेषनाग। छाबै – शोभायमान।
संदर्भ:- प्रस्तुत पजामा रे पाठ्यपुस्तक साहित्य मेला के ” सूर के पद” नामक पाठ से लिया गया है, जिसके कवि सूरदास जी है।
प्रसंग :- प्रस्तुत पद में सूरदास भगवान श्री कृष्ण के निद्रावस्था का वर्णन किया है।

व्याख्या:  प्रस्तुत पद में सूरदास ने बाल कृष्ण के सोने के दृश्य का बड़ा ही सुन्दर और मनोरम वर्णन किया है। माता यशोदा बाल कृष्ण को प्यार से सुलाती हैं। उनको सोता हुआ देखकर भगवान शिव डरकर काँपने लगते हैं और जगत के ब्रह्मा भ्रम में पड़ जाते हैं। उन्हें लगता है कि यदि जगत के पालनहार सो गये तो संसार की गति ही रुक जायेगी। लेकिन यह तो भगवान विष्णु की एक लीला है और यह लीला इतनी मनोरम है कि ब्रह्मा भी आकर्षित हुए बिना नहीं रहते हैं। सोते हुए कृष्ण की अधखुली और अलसायी आँखें बहुत ही सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती हैं। सफेद आँख के मध्य में स्थित काली पुतलियाँ ऐसी प्रतीत होती है, जैसे वे बाहर आना चाहती हैं, लेकिन उनकी आलस के कारण आँखें बंद हो जाती है और बंद आँखें लाल कमल की तरह दिखाई देती हैं। इस दृश्य को देखकर ऐसा लगता है कि मानों सूर्य के डूब जाने से कमल की पंखुड़ियाँ संकुचित हो गई हों और कमल के पराग का रस पीने आया भौंरा उन पंखुड़ियों में कैद हो गया है, जिससे वह उड़ नहीं पा रहा है। बालकृष्ण सुप्तावस्था में जब साँस लेते हैं, तब उनका सुंदर पेट इस तरह हिलता है, मानो श्वेत दूध का सागर बह रहा हो। बालकृष्ण की नाभि कमल के समान दिखाई दे रही है। कृष्ण को सोता हुआ देखकर ब्रह्मा अपने कमलरूपी आसन अर्थात् से उतर आयें हैं। लेकिन उनके उदर को ही कमल के रूप में देखकर उन्हें पछतावा होता है कि वे क्यों पद्मासन से उतर आये? वास्तव में वह कमल नहीं कृष्ण का उदर ही था । अतः ब्रह्मा कुछ समय और कृष्ण का सहचर्य पाने से चुक गए इसी बात का उन्हें पछतावा हो रहा है। बालकृष्ण अपने एक हाथ को सिर के नीचे दबाकर सोये हैं, जिससे उनके सुंदर बालों की लटें उनके मुखमंडल के चारों ओर इस तरह छा गई हैं, मानों शेषनाग फन फैलाकर उनके चेहरे को छाया प्रदान कर रहा हो। इस प्रकार इस पद में बाल कृष्ण का वात्सल्य का मनोहर वर्णन किया गया है।

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

१. अनाथ होकर कभी कहां बैठे हैं?

क) पेड़ की डाल पर       ख) छत पर
ग) सड़क पर                 घ) नाव में।
उत्तर: क) पेड़ की डाल पर

२. ‘सुमिरत’ से क्या संकेत मिलता है?

क) दर्शन करना।        ख) ईश्वर का नाम लेना
ग) तीर्थ करना।           घ) पूजा करना।
उत्तर: ख) ईश्वर का नाम लेना

३.’सर्प को दूध पिलाने’ का त्यौहार किस दिन मनाया जाता है?

क) होली में।                   ख) दीपावली में
ग) गणेश चतुर्थी के दिन    घ) नाग पंचमी के दिन
उत्तर: घ) नाग पंचमी के दिन

४. सूर्य के डूबते ही कमल की पंखुड़ियां क्या हो जाती है?

क) फैल जाती हैं          ख) सिकुड़ जाती हैं
ग) गिर जाती हैं।          घ) उपरोक्त में से कोई
उत्तर:  ख) सिकुड़ जाती हैं

लघूत्तरीय प्रश्न-

१)  कवि किससे प्रार्थना करता है?

उत्तर:  कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है।

२)  बान कौन साधता है?

उत्तर: बान बहेलिया (शिकारी) साधता है

३)  मन को किसका साथ छोड़ने के लिए कहा गया है?

उत्तर:  मन को दुष्ट और पापियों का साथ छोड़ने के लिए कहा गया है

४)  ‘पय पान’ कराने पर भी कौन विष का त्याग नहीं करता?

उत्तर:  ‘पय पान’ कराने पर भी सांप अपना विष का त्याग नहीं करता।

५) गंगा नहाने की बात किसके लिए कही गयी है?

उत्तर: गंगा नहाने की बात कुत्ता के लिए कही गयी है।

बोधमूलक प्रश्न-

१. सूरदास ने भक्ति के मार्ग में कौन-सी बाधाएँ पायी हैं और उनसे मुक्ति का क्या तरीका बताया है?

उत्तर: सूरदास ने भक्ति के मार्ग में काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह उत्पन्न मायाजाल  जैसे बाधाएँ पायी हैं तथा सूरदास जी इनसे मुक्ति पाने का तरीका बताते हुए कहते हैं कि ईश्वर से विमुख रहने वाले दुष्ट और पापी लोगों की संगति से दूर रहने से ही हम इन बाधाओं से मुक्ति पा सकते हैं।

२. सूरदास ने मन को क्या समझाया है?

उत्तर: सूरदास ने मन को दुष्ट और पापी लोगों की संगति छोड़ने के लिए कहा है। सूरदास का कहना है कि ऐसे लोगों की संगति से अज्ञानता उत्पन्न होती है, जिससे काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ के मायाजाल में मन फँस कर रह जाता है, जिससे ईश्वर की भक्ति में रूकावटें आती है।

३. ” देखि सयन गति त्रिभुवन कपै ईस बिरंचि भ्रमावै” का आशय स्पष्ट करें।

उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति में कृष्ण के सो जाने पर सृष्टि का क्या होगा इसी पर विचार किया गया है माता यशोदा श्रीकृष्ण को सुलाती हैं कृष्ण को सोते देखकर तीनों लोक काँप जाता है और शिव तथा ब्रह्मा भी भ्रम में पड़ जाते हैं। क्योंकि कृष्ण विष्णु के अवतार हैं और विष्णु संसार के पालनहार हैं अगर वही सो गए तो इस संसार की गति रुक जायेगी इसी कारण श्रीकृष्ण के सोने से सभी चिंतित हैं।

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