ठाकुर का कुआँ कहानी की समीक्षा thakur ka kuan kahani ki samiksha

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मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कहानीकार हैं। उनकी कहानियां तत्कालीन समाज का दर्शन कराती है। मुंशी प्रेमचंद ने समाज को सामने से देखा और उन्हें समझा। उन्होंने ग्रामीण समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों, शोषणकारी मनोवृत्ति को अपनी कहानियों का विषय बनाया। मुंशी प्रेमचंद का जीवन एक गरीब परिवार में बीतने के कारण गरीबों का दुख दर्द अच्छी तरीका से समझते थे। उनकी प्रस्तुत कहानी ‘ठाकुर का कुआं’ सामंतवादी शोषणकारी नीति का एक उदाहरण है कहानी कला के आधार पर ठाकुर का कुआं कहानी की समीक्षा करते हुए देखते हैं-

 

१. कथानक संबंधी विशेषताएं:

प्रेमचंद के कथानक प्रायःग्रामीण जीवन से लिए जाते हैं। उनमें किसी सामाजिक समस्या को दिखाना प्रमुख उद्देश्य होता है प्रस्तुत कहानी ठाकुर का कुआं का कथानक एक ऊंच-नीच, भेदभाव जैसे छुआछूत संबंधी समस्या को लेकर है। जिसमें गंगी अपने बीमार पति जोखू के लिए ठाकुर के कुआं से पानी लाने जैसी समस्या को बतलाया है। अपनी बीमार पति के लिए साफ पानी के लिए तरस जाने वाली गरीबी को इस कहानी के माध्यम से बताया गया है ठाकुर का कुआं कथानक अत्यंत सुगठित है अपने उद्देश्यों को प्रस्तुत करने में पूर्ण सफल है।

 

२. पात्रों का चरित्र चित्रण:

कहानी में पात्रों का चरित्र चित्रण अत्यंत स्वाभाविक सजीव हुआ है। गंगी का आक्रोश और जोखू के बेचारगी का चित्रण करने में प्रेमचंद जी को पूर्ण सफलता मिली है। अन्य पात्र कथानक में आए हैं वह कथानक का विकास करने में सहायक है। मुख्य पात्र के रूप में गंगी पूरी कहानी में छाई हुई है। गंगी का आक्रोश बेगार प्रथा के प्रति भी है वह कहती हैं कि काम करा लेते हैं मजूरी देते नाना मरती है। बीमारी हालात में पड़ा जोखू का चित्रण भी प्रेमचंद जी ने बहुत ही अच्छा से किया है।

 

 

३. सटीक संवाद का प्रयोग –

प्रस्तुत कहानी के संवाद अत्यन्त सटीक और सजीव हैं। संवाद पात्रों का चरित्रांकन करने और कथानक का विकास करने में सहायक सिद्ध हुए मुख्यतया संवाद गंगी और जोखू के बीच है। इसके अतिरिक्त ठाकुर परिवार की दो स्त्रियों के बीच का संवाद है। इन संवादों से तत्कालीन समाज की सामन्ती मन:स्थिति और उनमें निम्न वर्ग तथा स्त्रियों की दशा का सच्चा चित्र प्राप्त होता है। ठाकुर के कुएँ से पानी लाने के लिए तैयार गंगी से जोखू कहता है – ‘हाथ-पाँव तुड़वा आयेगी और कुछ न होगा। बैठ चुपके से। ब्रह्म देवता आशीर्वाद देंगे, ठाकुर लाठी मारेगे, साहूजी एक के पाँच लेंगे। गरीबों का दर्द कौन समझता है। हम तो मर भी जाते हैं तो कोई दुआर पर झाँकने नहीं आता, कंधा देना तो बड़ी बात है। ऐसे लोग कुएँ से पानी भरने देंगे ? इस प्रकार के संजीव और सटीक संवाद ठाकुर का कुआं कहानी में देखने को मिलता है।

 

४.देशकाल और वातावरण का सजीव चित्रण –

प्रेमचन्द की कहानियों में देशकाल और वातावरण का सजीव चित्रण हुआ है। वैसे भी प्रेमचंद सामाजिक यथार्थ को अच्छी तरह से जानता और समझता है ठाकुर का कुआं कहानी में जिस समय देश या समाज का वातावरण जैसा होता है उसी तरह का परिवेश वे इस कहानी में दिखाया है और इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। उस समय के देशकाल और वातावरण को इस संवाद से स्पष्ट करते है

कुएँ पर पानी भरने आयी ठाकुर-परिवार की दो स्त्रियों के आपसी कथोपकथन से उनकी स्थिति स्पष्ट होती है

‘हम लोगों को आराम से बैठे देखकर मरदों को जलन होती है।’

‘हाँ, यह तो न हुआ कि कलसिया उठाकर भर लाते। बस, हुकूम चला दिया कि ताजा पानी लाओ, जैसे हम लौंडियाँ ही तो हैं ।’

‘लौंडियाँ, नहीं तो और क्या हो तुम? रोटी-कपड़ा नहीं पातीं? दस-पाँच रुपये छीन-झपट कर ले ही लेती हो। और लौंडिया कैसी होती है ? मत लजाओ दीदी! दिन भर आराम करने को जी तरस कर रह जाता है। इतना किसी दूसरे के घर कर देती, तो इससे कहीं आराम से रहती। ऊपर से वह एहसान यहाँ काम करते-करते मर जाओ, पर किसी का मुँह ही नहीं सीधा होता।’

 

५.भाषा-शैली –

कहानी ‘ठाकुर का कुआँ’ की भाषा आम बोल-चाल की भाषा है जिसमें उर्दू और देशज शब्दों का प्रयोग है। शब्द भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतया हैं और कहानी के प्रवाह में बाधक नहीं हैं। लोक जीवन में प्रयुक्त मुहावरों और कहावतों का भी प्रयोग है जो भाषा को जीवन्त बना देते हैं। जैसे- ‘कभी गांव में आ जाती हूं, तो रसभरी आंखों से देखने लगते हैं। जैसे सबकी छाती पर सांप लोटने लगता है।’

 

६.सोद्देश्यता:-

प्रेमचंद की कहानियां आदर्शोन्मुख यथार्थवादी की कहानियां हैं। इनमें किसी न किसी सामाजिक समस्या का चित्रण होता है। प्रस्तुत कहानी ‘ठाकुर का कुआं’ ऊंच-नीच, भेदभाव जैसे छुआछूत की समस्या पर प्रकाश डालती है। इसका कथानक मर्मस्पर्शी है और अपने उद्देश्य में सफल है। ठाकुर परिवार की स्त्रियां जहां कहती है कि दिन भर आराम करने को जी तरस कर रह जाता है वही गंगी घर का काम बाहर की मजबूरी और पति की सेवा सभी कुछ निष्ठा और परिश्रम के साथ करते हैं। मुंशी प्रेमचंद ने ठाकुर का कुआं कहानी के माध्यम से अपने उद्देश्य को सफलता पूर्वक जनता के सामने लाने में सफल हुए हैं।

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