स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार , जीवन दर्शन, शिक्षा के उद्देश्य, आधारभूत सिद्धांत, पाठ्यक्रम

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स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार , जीवन दर्शन, शिक्षा के उद्देश्य, आधारभूत सिद्धांत

 

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (swami vivekanand ka jivan parichay) swami vivekananda biography in hindi

स्वामी विवेकानंद का जन्म सन् 1863 ई. में कलकाता में हुआ था। उनका पहले का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। वे बचपन से ही प्रतिभाशाली छात्र थे। उनके विषय में उनके प्रधानाचार्य हैस्ट्री ने कहे थे ” मैंने विश्व के विभिन्न देशों की यात्राएं की है परंतु किशोरावस्था में ही इसके समान योग्य एवं महान क्षमताओं वाला युवक मुझे जर्मन विश्वविद्यालय में नहीं मिला।”
स्वामी जी मिस्टर हैस्ट्री द्वारा दी गई प्रेरणा पर दक्षिणेश्वर पहुंचे। उसी मंदिर में उन्हें रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात हुई। स्वामी जी ने उनसे साक्षात्कार किया। यह साक्षात्कार उनके जीवन की अपूर्व घटना थी। स्वामी जी को रामकृष्ण परमहंस के उत्तरो से संतोष मिली। नरेंद्र नाथ जब दूसरी बार अपने गुरु के दर्शन करने के लिए गए तो उन्हें दिव्य शक्ति का अनुभव हुआ। रामकृष्ण परमहंस जी के संपर्क में नरेंद्र जी 6 वर्ष रहे तथा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करके नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद पर गए। सन 1886 ईस्वी में स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी का निधन हो गया। स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु की स्मृति में रामकृष्ण मिशन स्थापित किया तथा उनके द्वारा दिए गए वेदांत के उद्देश्यों को एशिया यूरोप तथा मेरी का की जनता में आजीवन प्रचार किया। संक्षेप में स्वामी जी ने पश्चात्म देशों में भावात्मक तथा भारत में क्रियात्मक वेदांत का प्रचार करके हिंदू धर्म की महानता को फैलाया।
उन्होंने अपने अंतिम दिनों में विश्व बंधुत्व के लिए भी प्रचार किया। सन् 1902 विषय में स्वामी जी का देहांत हो गया।

 

स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन

स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन मानव के लिए अत्यंत गौरवपूर्ण एवं प्रेरणादायक हैं। उन्होंने बताया कि जीवन एक संघर्ष है। इस संघर्ष में केवल समर्थ ही विजय होती हैं तथा असमर्थ नष्ट हो जाता है।
अतः विजय प्राप्त करके जीवित रहने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की प्रत्येक चुनौती के साथ डटकर संघर्ष करना चाहिए। स्वामी जी तत्कालीन भारतीय जनता के कष्टों को देखकर बड़ा दुख होता था। एक दिन उन्होंने कहा आज हम लोग दीन हीन हो गए हैं। हम प्रत्येक कार्य को दूसरों के डर से करते हैं। ऐसा लगता है कि हमने शत्रुओं के देश में जन्म लिया हैं, मित्रों के देश में नहीं। स्वामी विवेकानंद की नस नस में भारतीय तथा आध्यात्मिकता कूट-कूट कर भरी हुई थी। अतः उनकी शिक्षा दर्शन का आधार भी भारतीय वेदांत तथा उपनिषद ही रहे। वे कहते थे कि प्रत्येक प्राणी में आत्मा विराजमान है। इस आत्मा को पहचानना ही धर्म है। स्वामी जी का अटल विश्वास था कि सभी प्रकार का सामान्य तथा आध्यात्मिक ज्ञान मनुष्य के मन में ही है। स्वामी जी का कहना था कि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को नहीं सिखाता बल्कि वो खुद सीखता है। बाहरी शिक्षक तो केवल सुझाव प्रस्तुत करता है। जिससे भीतरी शिक्षक को समझाने और सिखाने के लिए प्रेरणा मिल जाती हैं।
स्वामी जी ने कहा है कि हम लोग उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षाएं पास कर ली हो तथा जो अच्छे भाषण दे सकता है पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं कर सकती, जो चरित्र निर्माण नहीं कर सकती, जो समाज सेवक की भावना को विकसित नहीं कर ऐसी शिक्षा का क्या लाभ है।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा का अर्थ

स्वामी विवेकानंद के अनुसार, शिक्षा का अर्थ है – “जीवन के सभी पहलुओं का विकास करना।” उन्हें यह मान्यता थी कि शिक्षा एक पूर्णतापूर्वक विकासमय विभाजन है जो छात्रों को शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक मानकों के अनुसार प्रशिक्षित करने का प्रयास करता है। उनके अनुसार, शिक्षा सिर्फ पुस्तकों और पढ़ाई से नहीं बल्क प्रायोगिक जीवन के माध्यम से होनी चाहिए ताकि छात्र अपनी अनुभवों, ज्ञान और संवेदनशीलता के माध्यम से सीख सकें और स्वयं को संपूर्णता की ओर विकसित कर सकें।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा की परिभाषा

स्वामी विवेकानंद के अनुसार, शिक्षा की परिभाषा है –
“यह मनुष्य को उसके आदर्श और असीम विकास की ओर ले जाने की प्रक्रिया है।”
उन्होंने शिक्षा को जीवनशैली के माध्यम से प्राप्त होने वाली अनुभवों के माध्यम से सीखने का तरीका माना। उन्हें यह मान्यता थी कि शिक्षा का उद्देश्य है छात्रों को स्वयं को पहचानने, अपनी स्वतंत्रता और शक्ति को विकसित करने, सत्य को जानने और उसका अनुभव करने, और अंततः आदर्श मानव बनने की प्रेरणा देना। उन्होंने शिक्षा को जीवन की पूर्णता और समृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण साधन माना।

 

स्वामी विवेकानंद का शिक्षा दर्शन (swami vivekanand ka shiksha darshan)

जिस प्रकार स्वामी जी का जीवन दर्शन विस्तृत और यथार्थवादी है उसी प्रकार उनका शिक्षा दर्शन है वे वर्तमान शिक्षा प्रणाली की आलोचना करते थे और तत्कालिक शिक्षा प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि शिक्षा मनुष्य को जीवन संग्राम के लिए कटिबद्ध नहीं करती बल्कि उसे शक्तिहीन बनाती है। स्वयं उन्होंने अपने शिक्षा दर्शन में कहें

“हमें ऐसे शिक्षा की आवश्यकता है जिसके द्वारा चरित्र का निर्माण होता है, मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है, बुद्धि का विकास होता है और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है।”

स्वामी विवेकानंद के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धांत

स्वामी विवेकानंद के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
१. स्वामी विवेकानंद जी का कहना है कि बालकों को केवल उसकी ज्ञान नहीं देना चाहिए क्योंकि पुस्तकों का अध्ययन की शिक्षा नहीं है।
२. ज्ञान व्यक्ति के मन में विद्यमान हैं वह स्वयं ही सीखता है।
३. मन वचन तथा कर्म की शुद्ध आत्मा नियंत्रण है।
४. शिक्षा बालक का शारीरिक मानसिक नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास करता है।
५. शिक्षा से बालक की चरित्र का गठन हो मन का बल बड़े तथा बुद्धि विकसित हो जिससे वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके।
६. बालक तथा बालिका दोनों को समान शिक्षा मिलनी चाहिए।
७. स्त्रियों को विशेष रूप से धार्मिक शिक्षा दी जानी चाहिए।
८. जनसाधारण में शिक्षा का प्रचार किया जाए।
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स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार

विवेकानंद के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

१. पुर्णत्व को प्राप्त करने का उद्देश्य
स्वामी जी के अनुसार शिक्षा का प्रथम उद्देश्य अंतर्निहित पूर्णता को प्राप्त करना है। उनके अनुसार लौकिक तथा आध्यात्मिक सभी ज्ञान मनुष्य के मन में पहले से ही विद्यमान होता है।

२. शारीरिक एवं मानसिक विकास का उद्देश्य
विवेकानंद जी के अनुसार शिक्षा का दूसरा उद्देश्य बाला का शारीरिक एवं मानसिक विकास करना है। उन्होंने शारीरिक उद्देश्य पर इसलिए बल दिया जिससे आज के बालक भविष्य में निर्भीक एवं बलवान योद्धा के रूप में गीता का अध्ययन करके देश की उन्नति कर सकें। मानसिक उद्देश्य पर बल देते हुए उन्होंने बताया कि हमें ऐसे शिक्षा की आवश्यकता है जिसे प्राप्त करके मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सके।

३. नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास का उद्देश्य
स्वामी जी का विश्वास था कि किसी देश के महानता केवल उनके संसदीय कामों से नहीं होती अपितु उसके नागरिकों की महानता से होती है। पर नागरिकों को महान बनाने के लिए उनका नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास परम आवश्यक है।

४. चरित्र निर्माण का उद्देश्य
विवेकानंद जी ने चरित्र निर्माण को शिक्षा का महत्वपूर्ण उद्देश्य माना। इसके लिए उन्होंने ब्रह्माचार्य पालन पर बल दिया और बताया कि ब्रह्माचार्य के द्वारा मनुष्य मैं बौद्धिक तथा आध्यात्मिक शक्तियां विकसित होगी तथा वह मन वचन और कर्म से पवित्र बन जाएंगे।

५. आत्मविश्वास, श्रद्धा एवं आत्मत्याग की भावना
स्वामी जी ने आजीवन इस बात पर बल दिया कि अपने ऊपर विश्वास रखना, श्रद्धा तथा  आत्मत्याग की भावना को विकसित करना शिक्षा का महत्व पूर्ण उद्देश्य है। उन्होंने लिखा उठो जागो और उस समय तक बढ़ते रहो जब तक की चरम उद्देश्य की प्राप्ति ना हो जाए।

६. धार्मिक विकास का उद्देश्य
स्वामी जी ने धार्मिक विकास को शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य माना। वे चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति उस सत्य अथवा धर्म को मालूम कर सके जो उनके अंदर दिया हुआ है। उसके लिए उन्होंने मन तथा हृदय के प्रशिक्षण पर बल दिया। और बताया कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसे प्राप्त करके बालक अपने जीवन को पवित्र बना सकें।
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स्वामी विवेकानंद के अनुसार पाठ्यक्रम

स्वामी विवेकानंद के अनुसार, पाठ्यक्रम को व्यापक और संपूर्णतापूर्वक विकसित करना चाहिए। उन्होंने यह मान्यता थी कि पाठ्यक्रम को सिर्फ तकनीकी ज्ञान के सीमित सत्रों पर ही सीमित नहीं रखना चाहिए। निम्नलिखित पाठ्यक्रम के तत्वों को विवेकानंद ने महत्वपूर्ण माना:

1. शारीरिक शिक्षा: शिक्षा का पहला महत्वपूर्ण तत्व शारीरिक शिक्षा है। उन्हें यह मान्यता थी कि एक स्वस्थ शरीर मन के समग्र विकास के लिए आवश्यक है।

2. मनोवैज्ञानिक शिक्षा: विवेकानंद ने मनोवैज्ञानिक शिक्षा को भी महत्व दिया। उन्हें यह मान्यता थी कि छात्रों को अपनी मनोबल को पहचानने, संयमित करने और नियंत्रित करने की शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।

3. आध्यात्मिक शिक्षा: स्वामी विवेकानंद ने आध्यात्मिक शिक्षा को महत्वपूर्ण तत्व माना। उन्हें यह मान्यता थी कि छात्रों को आध्यात्मिकता, नैतिकता और मानवीय मूल्यों की प्रशिक्षण देना चाहिए।

4. व्यावसायिक शिक्षा:्वामी विवेकानंद ने छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा की भी महत्वता बताई। उन्हें यह मान्यता थी कि छात्रों को अपने कौशल और क्षमताओं के विकास के लिए उच्चतम शिक्षा और तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है।

ये तत्व पाठ्यक्रम के महत्वपूर्ण हिस्से हैं, जिन्हें स्वामी विवेकानंद ने व्यक्तिगत और समाजिक विकास के लिए आवश्यक माना।

शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति में पाठ्यक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि आध्यात्मिक विकास जीवन का लक्ष्य है और इसे प्राप्त करने में शिक्षा को महत्वपूर्ण योगदान देना है, तो निश्चित रूप से ऐसे पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती है जो धार्मिक ग्रंथों, पुराणों, उपनिषदों, दर्शनशास्त्र आदि को सम्मिलित करते हैं। स्वामीजी यह भी कहते थे कि केवल आध्यात्मिक नहीं, भौतिक विकास भी होना चाहिए।

इसलिए, इतिहास, भूगोल, गणित, विज्ञान, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, तकनीकी शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण आदि विषयों को उचित स्थान देने की आवश्यकता होती है। स्वामीजी छात्रों को शारीरिक दृष्टि से सुदृढ़ देखना चाहते थे, इसलिए पाठ्यक्रम में शारीरिक शिक्षा को महत्व देने के पक्षधर थे। स्वामीजी विदेशी भाषा की शिक्षा के पक्षधर थे, लेकिन मातृभाषा को हमेशा प्राथमिकता देने की आवश्यकता को सदैव महसूस करते थे

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स्वामी विवेकानंद के अनुसार जीवन का लक्ष्य है

स्वामी विवेकानंद के अनुसार, जीवन का लक्ष्य है – “जीवन में आदर्श मानव बनना।” उन्होंने यह सिद्धान्त प्रभावशाली ढंग से प्रचारित किया कि हमारा अंतिम लक्ष्य है अपने स्वभाव को पूर्ण करके उच्चतम आदर्शों को प्राप्त करना। उन्हें यह मान्यता थी कि हमारा जीवन एक अद्वितीय अवसर है जिसे हमें सच्ची ज्ञान, आध्यात्मिकता, नैतिकता और सेवा के माध्यम से उपयोग करके उच्चतम परम लक्ष्य की प्राप्ति में लगाना चाहिए।

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