हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय harishankar parsai ka jivan parichay

 हरिशंकर परसाई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय harishankar parsai ka jivan parichay

हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय (harishankar parsai ka jivan parichay)

हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त 1924 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी गांव में हुआ था। हरिशंकर परसाई जी का प्रारंभिक शिक्षा अपने ही गांव के पाठशालाओं और स्कूलों में हुई। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए नागपुर गए नागपुर से ही उन्होंने हिन्दी में M.A. किया फिर ‘डिप्लोमा इन टीचिंग’ की उपलब्धि हासिल की। 1953 से 1957 तक प्राइवेट स्कूल में उन्होंने पढ़ाया भी। लेकिन बाद में नौकरी करने के बजाय लेखक बनकर जीवनयापन करना सही समझा। हिंदी में लेखन के आधार पर आजीविका चलाना आसान काम नहीं है। लेकिन परसाई जी जीवन पर्यंत अपने निश्चय पर अडिग रहे। उन्होंने जबलपुर से ‘वसुधा’ नाम की साहित्यिक मासिक पत्रिका काफी प्रकाशन किया। इस पत्रिका के प्रकाशन में उन्हें काफी नुकसान हुआ फिर भी कई वर्षों तक उन्होंने इस पत्रिका का सफलतापूर्वक प्रकाशन करता रहा। ‘वसुधा’ के साहित्यिक अवदान और लेखन के लिए जबलपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘डीलीट’ की उपाधि देकर सम्मानित किया। हिंदुस्तान और धर्मयुग नामक साप्ताहिक पत्रिकाओं का भी उन्होंने प्रकाशन किया। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में वर्षों तक उन्होंने स्तंभ लेखन किया। उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया जिसमें 1982 में विकलांग श्रद्धा का दौर के लिए केंद्रीय साहित्य अकादमी सम्मान भी शामिल है। परसाई जी कई क्षेत्रों में लगातार सक्रिय रहे। वह मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के समय से ही अध्यक्ष मंडल के अध्यक्ष रहे। वह मजदूर आंदोलन से जुड़े हुए थे। अध्यापन के दौरान जीवन के विविधता पूर्ण अनुभव ने उनके लेखन को तो सामाजिक आधार दिया। वह लगातार शिक्षक संघ की गतिविधियों से भी जुड़े रहे। परसाई जी का 10 अगस्त 1995 में निधन हो गया।

 

हरिशंकर परसाई जी का साहित्यिक परिचय दीजिए। harishankar parsai ka sahityik parichay

 

हरिशंकर परसाई चार दशकों से अधिक समय तक साहित्य लेखन में सक्रिय रूप से जुड़े रहे। हरिशंकर परसाई जी के साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने कहानी और निबंध की विधा को निरंतर तोड़ा है। उनकी रचनाओं में कहानी रिपोर्ताज संस्मरण रेखा चित्र पत्र लेखन साक्षात्कार आत्मकथा निबंध आदि विधाओं के विशेषता प्रचुर मात्रा में मिलता है। लेकिन उनके लेखक का केंद्रीय तत्व है व्यंग्य। व्यंग्य को आमतौर पर लेखन की सहेली माना जाता रहा है, लेकिन परसाई जी ने उसे स्वतंत्र विधा का रूप दे दिया।

परसाई जी का संपूर्ण लेखन छह खंडों में विभाजित ”परसाई रचनावाली” में संकलित है। वैसे उनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित है-

कहानी संग्रह: हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव।

उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज।

निबंध संग्रह: तब की बात और थी, भूत के पांव पीछे, बेईमानी की परत, पगडंडियों का जमाना, सदाचार का ताबीज, शिकायत मुझे भी है, वैष्णव की फिसलन, विकलांग श्रद्धा का दौर।

अन्य विधाएं: निठल्ले की डायरी, तिरछी रेखाएं, एक लड़की पांच दीवारें, बोलती रेखाएं, माटी कहे पुकार के, पाखंड का आध्यात्म तथा सुनो भाई साधो।

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हरिशंकर परसाई की भाषा शैली

हरिशंकर परसाई की भाषा परिनिष्ठित हिंदी के साथ ही साथ सामान्य बोलचाल की हिंदी है। उन्होंने अपनी रचनाओं में उर्दू और अंग्रेजी तथा कहावतों और मुहावरों का भी बखूबी प्रयोग किया। हरिशंकर परसाई मुख्य रूप से अपनी रचनाओं में व्यंग्यात्मक शैली का ही प्रयोग क्या है। इसके अलावा भी उनकी रचनाओं में प्रश्नात्मक शैली, विवेचनात्मक शैली, सूत्रात्मक शैली भी दिखाई देती है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न:

हरिशंकर परसाई का जन्म कहां हुआ था

उत्तर: हरिशंकर परसाई का जन्म जमानी गांव जिला होशंगाबाद मध्यप्रदेश में हुआ था।

हरिशंकर परसाई की मृत्यु कब हुई

उत्तर: हरिशंकर परसाई की मृत्यु 10 अगस्त 1995 ई.(संवत 2052 वि०) में हुई थी।

हरिशंकर परसाई की पत्नी का नाम

हरिशंकर परसाई की माता पिता का नाम

उत्तर: हरिशंकर परसाई के पिता का नाम जुमक लालू प्रसाद और माता का नाम चंपा बाई है।

हरिशंकर परसाई की शिक्षा

उत्तर: हरिशंकर परसाई की शिक्षा प्रारंभिक काल में अपने ही गांव के पाठशाला एवं स्कूलों में मूवी फिर वे नागपुर के वहीं से उन्होंने एम.ए. किया उसके बाद डिप्लोमा इन टीचिंग भी किया।

हरिशंकर परसाई की भाषा

उत्तर: हरिशंकर परसाई की भाषा परिनिष्ठित हिंदी के साथ ही साथ सामान्य बोलचाल की हिंदी है।

हरिशंकर परसाई की दो रचनाएं

उत्तर: जैसे उनके दिन फिरे(1963ई०), पगडंडियों का जमाना(1966ई०),सदाचार की ताबीज (1967ई०),

हरिशंकर परसाई की कहानियां

उत्तर: हरिशंकर परसाई की कहानियां है- हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव।

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