राजा लक्ष्मण सिंह का जीवन परिचय (Raja lakshman singh ka jeevan parichay)

आप सभी का इस आर्टिकल में स्वागत है आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से राजा लक्ष्मण सिंह का जीवन परिचय (Raja lakshman singh ka jeevan parichay) को पढ़ने जा रहे हैं। राजा लक्ष्मण सिंह एक अनुदित लेखक थे अपने जीवन काल में उन्होंने हिंदी को महत्व देते हुए अन्य भाषा के ऐसे से रचनाओं को हिंदी में अनुवाद करें लोगों को उन रचनाओं से अवगत कराया। उन्होंने अपनी इन रचनाओं में विशुद्ध हिंदी का प्रयोग किया। इन्हीं महानता के कारण आज अनेक अनुदित लेखक सामने आए तो आज हम अनुवाद की शुरुआत करने वाले लेखक राजा लक्ष्मण सिंह का जीवन परिचय (Raja lakshman singh ka jeevan parichay) देखने जा रहे हैं।

राजा लक्ष्मण सिंह का जीवन परिचय (Raja lakshman singh ka jeevan parichay)

राजा लक्ष्मण सिंह का जीवन परिचय

राजा लक्ष्मण सिंह का जन्म आगरा के एक प्रतिष्ठित क्षत्रिय परिवार में 1826 ई. में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा उनकी 5 वर्ष की अवस्था से शुरू हुई उन्होंने संस्कृत और फारसी की शिक्षा प्राप्त की। 13 वर्ष की आयु तक उन्होंने इन दोनों भाषाओं में पर्याप्त योग्यता प्राप्त कर ली। इसके पश्चात में अंग्रेजी शिक्षा की ओर अग्रसर हुए। आगरा कॉलेज में प्रविष्ट होकर उन्होंने अंग्रेजी का अध्ययन आरंभ किया। विद्यालय जीवन समाप्त करने तक उन्हें हिंदी संस्कृत, अरबी, फारसी, और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान हो गया था। उन्होंने बांग्ला भाषा में भी अपनी अच्छी पकड़ बना ली थी। विद्या ध्यान के पश्चात राजकीय सेवा में आ गए। 1855 में वे इटावा के तहसीलदार बना दिये गये। कुछ समय बाद उन्हें डिप्टी कलेक्टर के पद पर नियुक्त कर बांदा भेज दिया गया। 1857 में उनकी राज भक्ति से प्रसन्न होकर सरकार ने उन्हें प्रथम श्रेणी का डिप्टी कलेक्टर बना दिया तथा उन्हें बुलंदशहर भेज दिया क्या। 1870 के दिल्ली दरबार में उन्हें राजा की उपाधि मिली। प्रथम श्रेणी के डिप्टी कलेक्टर के पद पर लंबे समय तक सेवा करने के बाद 1889 में उन्होंने अवकाश ग्रहण किया।

राजा साहब मी राज भक्ति, देशभक्ति और शिक्षा के प्रति विशेष प्रेम था। इटावा में तहसीलदार नियुक्त होने पर उन्होंने वहां के कलेक्टर श्री ह्यूम के नाम पर ह्यूम हाई स्कूल की स्थापना की। वे इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदस्य भी बने। देशभक्ति और समाज सुधार के उद्देश्य से उन्होंने प्रजा हितैषी नामक समाचार पत्र का संपादन भी किया। हिंदी के प्रति उनका अटूट प्रेम था। अपनी इसे प्रेम के कारण उन्होंने शिवप्रसाद हिंद सितारे की भाषा संबंधी नीति का विरोध भी किया। उनका निश्चित मत था कि हिंदी और उर्दू दो शैलियां हैं। उन्होंने संस्कृत के विभिन्न ग्रंथों का शुद्ध हिंदी में अनुवाद किया। अनुवाद में मूल भाव की रक्षा करते हुए उसे सरल ढंग से अभिव्यक्त करने में राजा साहब को विशेष सफलता मिलेगी। अनुवाद के द्वारा हिंदी गद्य के विकास में वे सहायक हुए। इस राजभक्त देशभक्त और हिंदी सेवी महापुरुष का निधन 1894 ई. में हो गया।

राजा लक्ष्मण सिंह की रचनाएं (Raja lakshman singh ki rachna)

राजा लक्ष्मण सिंह की रचनाओं को दो भागों में बांटा गया है
1. अनूदित
2. मौलिक।
राजा लक्ष्मण सिंह अनुवाद के लिए ही मुख्यत: विख्यात थे। उनके अनुदित कृतियों में दंड संग्रह, कालिदास कृत शकुंतला, रघुवंश और मेघदूत अधिक विख्यात हैं। रघुवंश को पहले उन्होंने गद्य में अनूदित किया और बाद में पद्य में। किंतु उन्होंने 8 सर्गो तक ही अनुवाद कर सकें। उनकी मौलिक कृति के रूप में बुलंदशहर का इतिहास तो हमेशा चर्चा में रहती है। इसका 3 भाषाओं में लेख मिलता है उर्दू, हिंदी और मराठीकालिदास कृत अभिज्ञान शकुंतल का अनुवाद अन्य लेखकों ने भी किया है किंतु आज भी राजा साहब कृत अनुवाद को ही पाठक पसंद करते हैं अपने अनुवाद कर्म से राजा साहब ने हिंदी भाषा को पुष्ट किया तथा लोगों को अनुवाद कला से परिचित कराया।

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राजा लक्ष्मण सिंह की भाषा शैली

राजा लक्ष्मण सिंह एक अनुदित लेखक थे उनकी रचनाओं में विशुद्ध हिंदी का प्रयोग हुआ है। इसी विशुद्धता के कारण उन्होंने भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया। यही कारण है कि उनकी भाषा में क्लिष्टता नहीं आए। राजा लक्ष्मण सिंह की भाषा खड़ी बोली थी। हिंदी की विशुद्धता का पक्ष लेने के कारण वे उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का भी व्यवहार अपनी रचनाओं में अत्यंत सीमित मात्रा में करते थे। कहीं-कहीं उन्होंने अपनी रचनाओं में ब्रजभाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया है। भाषा में प्रांतीय शब्दों का प्रयोग भी कहीं-कहीं मिलता है। शैली की दृष्टि से राजा लक्ष्मण सिंह की शैली भावना प्रधान थी। इसीलिए उन्होंने काव्य ग्रंथों का अनुवाद किया। काव्य ग्रंथों के अनुवाद के रूप में या भावना प्रधान शैली बड़ी महत्वपूर्ण सिद्ध हुई किंतु इस शैली में मौलिक ग्रंथ न लिखे जा सके।

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