व्यंजन किसे कहते है व्यंजन के भेद और उच्चारण अल्पप्राण, महाप्राण, घोष, अघोष

व्यंजन किसे कहते है व्यंजन के भेद और उच्चारण अल्पप्राण, महाप्राण, घोष, अघोष

व्यंजन किसे कहते है व्यंजन के भेद और उच्चारण अल्पप्राण, महाप्राण, घोष, अघोष
व्यंजन किसे कहते है

जिन वर्णों के उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है, उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं। प्रत्येक व्यंजन वर्ण के उच्चारण में की ध्वनि छिपी रहती है। इसके अभाव में व्यंजन का उच्चारण संभव नहीं है। जैसे क् + अ =  , ज् + अ = । जिस व्यंजन के साथ स्वर नहीं जुड़ा रहता है उसके उच्चारण में कठिनाई होती है क्यों की बिना स्वर के व्यंजनों का उच्चारण करना  कठिन हैं। व्यंजन ध्वनि के उच्चारण में भीतर से आने वाली वायु , मुह में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में रुकती है। ड़ ढ़ भी व्यंजन हैं। वर्णमाला में चार संयुक्त व्यंजनों क्ष, त्र, ज्ञ, श्र को भी शामिल किया गया है। ज़, , भी व्यंजन में स्वीकृत कर लिए गए है।

हिंदी में कुल कितने व्यंजन होते हैं?(How many vyanjan in hindi?)

हिन्दी में मूल व्यंजन वर्णों की संख्या 33 है।

संयुक्त व्यंजन कितने होते हैं?

हिन्दी में चार संयुक्त व्यंजन होते हैं – क्ष, त्र, ज्ञ, श्र ।

व्यंजन किसे कहते है?

जिन वर्णों को स्वरों की सहायता से बोला जाता है उसे व्यंजन कहते है।

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व्यंजन के भेद (Types of vyanjan in hindi)

व्यंजन के तीन भेद होते हैं

१. स्पर्श व्यंजन

२. अन्तःस्थ व्यंजन

३. ऊष्म व्यंजन

१. स्पर्श व्यंजन : जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय मुँह से हवा कंठ, तालु, मूर्धा, दाँत, या ओठों का स्पर्श करके बाहर आती है। इसी कारण इन्हें  स्पर्श व्यंजन कहते हैं

स्पर्श व्यंजन कितने होते हैं?

स्पर्श व्यंजन की कुल संख्या 25 हैं। क् से म् तक स्पर्श व्यंजन हैं।

२. अन्तःस्थ व्यंजन : जिन व्यंजनों का उच्चारण स्वर और व्यंजन के बीच का होता है उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते है। इंका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत, या ओष्ठों के सटने से होता है परंतु यह पूरी तरह से स्पर्श नहीं कर पता जिसके कारण इसे अर्द्धस्वर कहते है।

अन्तःस्थ व्यंजन कितने होते हैं?

अन्तःस्थ व्यंजन की कुल संख्या 4 हैं – य् र् ल् व्। 

३. ऊष्म व्यंजन : जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा मुँह में टकराकर ऊष्मा (गर्मी) पैदा करती है, उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं।

 ऊष्म व्यंजन कितने होते है ?

 ऊष्म व्यंजन की कुल संख्या 4 हैं – श् ष् स् ह्।  

अल्पप्राण और महाप्राण की परिभाषा

 उच्चारण में वायु टकराने के विचार से व्यंजनों के दो भेद हैं

 i.अल्पप्राण     ii. महाप्राण

अल्पप्राण की परिभाषा या अल्पप्राण का अर्थ :

जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास मुख से सीमित रूप में निकलती है तथा जिसमें हकार जैसे ध्वनि नहीं होती, उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं। प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्प- प्राण होता है । जैसे-

क वर्ग – क ग

च वर्ग – च ज ञ

ट वर्ग – ट ड ण

त वर्ग – त द न

प वर्ग  – प ब म

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महाप्राण की परिभाषा या महाप्राण का अर्थ :

 इन व्यंजनों के उच्चारण में हकार जैसी ध्वनि विशेष रूप में निकलती है तथा श्वास भी निकलती है और समय लगता है जिसके कारण इन्हें महाप्राण कहा जाता है महाप्राण का कहने का अर्थ है कि वर्णों के उच्चारण में प्राण वायु का विशेष महत्व होता है। प्रत्येक वर्ग का 2 तथा 4 वर्ण महाप्राण होता है। महाप्राण कि कुल संख्या 14 हैं।

क वर्ग – ख घ

च वर्ग – छ झ

ट वर्ग – ठ ढ़

त वर्ग – थ ध

प वर्ग  – फ ल

इसके अलावे श ष स और ह भी महाप्राण है    

घोष और अघोष क्या है ?

 घोष : आवाज के विचार से जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में स्वर तंत्रियाँ गूँजने लगती या कंपन होती हैं वे घोष या सघोष व्यंजन कहलाते हैं। प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा और पाँचवाँ वर्ण, सारे स्वर वर्ण तथा य,,, व और ह आदि वर्ण शामिल हैं ।  घोष की कुल संख्या 20 हैं इसके साथ ही जीतने स्वर हा सभी सघोष है   

अघोष : जिन वर्ण का उच्चारण करते समय स्वर तंत्रियों जहां से आवाज आती है उसमें अगर कंपन या गुंजन नहीं हो उसमे किसी प्रकार की किया प्रतिक्रिया न हो तो ऐसे वर्णों को हम अघोष
कहते हैं
अघोष का अर्थ होता है जिसमें गुंजन न हो। क वर्ग से प वर्ग के पहला और दूसरा वर्ण अघोष वर्ण हैं इन वर्णों को बोलने में स्वर तंत्र में कंपन नहीं होता हैं इसके अलावा श ष और भी अघोष वर्ण हैं। अघोष की कुल संख्या 13 हैं   

वर्णों के उच्चारण स्थान

प्रत्येक वर्ण का उच्चारण मुँह के किसी न किसी भाग से किया जाता है। जिस स्थान से वर्ण को बोला जाता है, वही उस वर्ण के उच्चारण का स्थान होता है। मुँह में छः स्थान है जहाँ से उच्चारण किया जाता है – कंठ, तालू, मूर्ध्दा, दाँत, ओंठ और नाक आदि।

i.कंठव्य – कण्ठ तथा जीभ के नीचे भाग से बोले जाने वाले वर्ण क वर्ग और ह तथा विसर्ग है ये वर्ण कण्ठ और जीभ द्वारा सम्मिलित रूप से उच्चरित हैं इसलिए इनको कंठस्थ कहा जाता है ।  

ii.तालव्य – इन वर्णों का उच्चारण करते समय तालू  तथा जिह्वका स्पर्श किया जाता है – च वर्ग तथा इनको तालू तथा जीभ मिलकर उच्चरित करते हैं। अतः ये शब्द तालव्य कहे जाते हैं।   

iii.मूर्ध्द्न्य – इस प्रकार के वर्णों मेन मूर्द्धा तथा जीभ का स्पर्श होता है – ट र तथा ष आदि 

iv.दंत्य – दाँत तथा जीभ के स्पर्श से बोले जाने वाले वर्ण – त वर्ग ल तथा स।

v. ओष्ठ्य- दोनों ओठों केस्पर्श से बोले जाने वाले वर्ण इसमें आते है प वर्ग इसमें आते है।

vi.तन्त्योष्ठ – दाँत से जीभ और ओंठ से स्पर्श से बोले जाने वाले वर्ण –

, , ष का उच्चारण –

इन तीनों के बोलने में साँस की ऊष्मा चलती है। ये संघर्षी व्यंजन हैं। इन व्यंजनों के उच्चरन में जीभ, होठों तथा तालू में रगड़ होती है। इन वर्णों के उच्चारण में ये केवल स्पर्श ही नहीं होती बल्कि रगड़ते भी हैं।

के उच्चारण में जिह्व तालू को स्पर्श करती हैं क्योंकि हवा दोनों बगलों से होती हुई निकाल जाती हैं।

के उच्चारण में जिह्वा मूर्ध्दा को स्पर्श करती है। अतः तालव्य वर्ण है तथा ष मूर्द्धन्य वर्ण है। 

के उच्चारण में जिह्वा और दाँत को स्पर्श करती है इसलिए इसे दाँत स कहा जाता
है ।  

 

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