पाठ्यपुस्तक की उपयोगिता (pathya pustak ki upyogita)

पाठ्य पुस्तक क्या है

पाठ्यपुस्तक प्राचीन काल से ही प्रचलित में था। प्राचीन काल में पाठ्यपुस्तक को ग्रंथ कहा जाता था उस समय भोजपत्र या ताड़ के पत्ते पर अंकित विषयों को पढ़ाया करते थे। समय के साथ साथ इनके नामों में भी बदलाव आने लगे और आज इसे पुस्तक या बुक के नाम से जानते हैं। अगर पाठ्यपुस्तक नहीं होती तो अध्यापक या आचार्यगण को किसी भी बारे में पढ़ाने में दिक्कतें होती और प्राचीन विषयों के बारे में आज हम पढ़ भी नहीं पाते पाठ्यपुस्तक हमें ये सभी सुविधाएं देती हैं जिसके माध्यम से आज हम पौराणिक कथाओं को भी तथा पौराणिक शिक्षा विधियों को भी जान पाते हैं क्योंकि यह सभी पुस्तकों में अंकित है अगर ऐसा नहीं होता तो हम पौराणिक साहित्य, इतिहास, सभ्यता, संस्कृति आदि के विषय में जान ही नहीं पाते।

कहानी कथन विधि या कथात्मक विधि

पाठ्यपुस्तक की परिभाषा

लेज के अनुसार :- “पाठ्य पुस्तक अध्ययन क्षेत्र की किसी शाखा की एक प्रमाणिक पुस्तक है।”

पाठ्यपुस्तक की उपयोगिता

१.अध्यापक की सहायता :- पाठ्यपुस्तक अध्यापक की सहायक होता है क्योंकि पाठ्यपुस्तक के बिना अध्यापक बच्चों को क्या अध्ययन कराएं इसका सटीक जानकारी उन्हें नहीं मिल पाता है इन सभी समस्याओं से पाठ्य पुस्तक शिक्षकों की परेशानियों को दूर करता है ताकि बच्चों को सटीक और सही मार्गदर्शन प्राप्त हो इस प्रकार पाठ्यपुस्तक अध्यापक की सहायता करता है।

 

२. ज्ञानार्जन में सहायक :- पाठ्यपुस्तक की सबसे बड़े उपयोगिता ज्ञानार्जन में सहायक होता है इसमें संपूर्ण जानकारी निहित होती है जिसे पढ़कर मनुष्य अपने ज्ञान को बढ़ा पाता हैं आज का आधुनिक युग, कंप्यूटर युग है जिसमें मिनटों में बच्चों को देश विदेश की जानकारियां एवं विभिन्न घटनाओं के बारे में आसानी से प्राप्त हो जाते हैं पर सभी जानकारियां इंटरनेट में प्राप्त नहीं होती उन्हें पाठ्यपुस्तक की मदद लेनी ही पड़ती है ताकि उन्हें पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त हो सके पाठ्य पुस्तक ज्ञानार्जन में सहायक सिद्ध होते हैं।

 

३. स्वाध्यायन के लिए प्रेरक :- पाठ्यपुस्तक हमारे ज्ञानार्जन की उत्तेजनाओं को तीव्र करता है साथ ही साथ मनुष्य को स्वाध्यायन के लिए भी प्रेरक बनाता है। हर मनुष्य चाहता है कि उन्हें हर प्रकार की जानकारी प्राप्त हो। और इन सब की‌ जानकारियां उन्हें पुस्तकों से ही प्राप्त होती हैं। साथ ही कक्षा में पढ़ाई जाने के पश्चात अगर बच्चों को समझ में नहीं आ रही हो तो वह घर आकर पाठ्यपुस्तक की सहायता से खुद ही पढ़ कर उन्हें समझने का प्रयास करते हैं। स्वाध्यायन से बच्चे या बड़ो का ज्ञानार्जन भी तीव्र गति से होता है।

 

४. ज्ञान का स्थाई रूप :- पाठ्य पुस्तक ज्ञान का स्थाई रूप है। पाठ्य पुस्तक में जो भी ज्ञान एक बार‌ अंकित हो जाए वह युगों-युगों तक बना ही रहता है और दूसरों को ज्ञान बांटता ही रहता है।

 

५. ज्ञान संचाय का साधन :- पाठ्यपुस्तक ज्ञान संचाय का साधन भी है क्योंकि पाठ्य पुस्तक में विभिन्न सामग्री को एक जगह इकट्ठा कर उन्हें अन्य लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाता है जिससे उन्हें भरपूर ज्ञान की प्राप्ति हो सके पाठ्य पुस्तक इन सब में आगे हैं और हमेशा आगे ही रहेगा।

 

६. ज्ञान स्थानांतरित का साधन :- पाठ्य पुस्तक स्थानांतरित का साधन भी है क्योंकि पाठ्य पुस्तक अपने में ज्ञान संचय करके रखता है मनुष्य अपने अनुसार उन ज्ञानों में नए ज्ञान भी समाहित करते रहता है और ज्ञान स्थानांतरित काय माध्यम निरंतर चलते ही रहता है।

 

७. सामूहिक अध्ययन में सहायक :- पाठ्य पुस्तक एक ऐसा साधन है जो सामूहिक अध्ययन में सहायक होती हैं अगर किसी विद्यार्थी के पास पाठ्य पुस्तक नहीं होती है तो वह सामूहिक अध्ययन की सहायता से एक ही पुस्तक से ज्ञान अर्जित कर सकता है साथ ही सामूहिक परिचर्चा के माध्यम से वे अपने जान की क्षमताओं में वृद्धि भी कर सकते हैं अतः पाठ्य पुस्तक सामूहिक अध्ययन में सहायक सिद्ध होता है।

 

८. शिक्षण का सीमा निर्धारण :- शिक्षण पाठ्यपुस्तक की सहायता से ही निर्धारित की जा सकती है हर स्तर की पाठ्य पुस्तक उनके योग्यता के अनुसार ही बनाई जाती है ताकि शिक्षण प्रक्रिया को सुचारू रूप से चला सके पाठ्य पुस्तक में पाठ्यक्रम के अनुसार सभी जानकारियां निहित होती है जिस शिक्षण का सीमा निर्धारण किया जा सके।

 

९. परीक्षा में छात्रों के लिए सहायक : आज के युग में अधिकतर बच्चे पढ़ाई लिखाई में बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते हैं ऐसे में न तो कोई स्कूल जाना पसंद करते हैं न ही स्कूल द्वारा दिए गए कार्य को ही पूरा कर पाते हैं जब परीक्षाएं सामने आती है एक पल के लिए घबरा जाते हैं ऐसे में उसका एक मात्रा साधन पाठ्यपुस्तक ही है जिसे पढ़कर वे अपना कोर्स पूरा करते हैं और साथ ही कुछ ऐसे बच्चों के लिए भी पाठ्यपुस्तक परीक्षाओं के दिनों में सहायक होती है जो ट्यूशन या कोचिंग क्लास करने के लिए उनके पास पर्याप्त सुविधाएं नहीं होती है ऐसे में उनके लिए एक मात्रा साधन पाठ्यपुस्तक ही है इस प्रकार परीक्षा में छात्रों के लिए पाठ्यपुस्तक एक अहम भूमिका निभाती है।

 

१०. क्रमबद्ध अध्ययन में सहायक :- पाठ्य पुस्तक क्रमबद्ध अध्ययन में सहायक होता है क्योंकि बच्चों की पाठ्यपुस्तक में उसके स्तर के अनुसार ही सिलेबस दिया होता है और स्कूल उन पुस्तकों को बच्चों को देता है जो स्कूल के सिलेबस में हो साथ ही शिक्षकों को पढ़ाने में भी मदद करती है।

 

११. गृहकार्य में सहायक :- अक्सर स्कूलों या फिर महाविद्यालय में बच्चों को गृहकार्य या प्रोजेक्ट दिया जाता है जिसे उन्हें हल करना होता है बच्चे पाठ्य पुस्तक की मदद से ही गृहकार्य को पूरा करते हैं।

 

१२. चरित्र निर्माण में सहायक :- बच्चों के चरित्र निर्माण में पाठ्य पुस्तक सहायक सिद्ध होती है क्योंकि पाठ्य पुस्तकों में बच्चों के चरित्र निर्माण तथा उसके विकास को मद्देनजर रखकर पाठ्य पुस्तक का निर्माण किया जाता है जिसे पढ़कर बच्चे का चारित्रिक निर्माण होता है। बच्चों के चरित्र निर्माण के लिए महान दार्शनिकों के विचारों को भी पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाता है।

 

१३. समय की बचत :- यह बात सच है कि पाठ्य पुस्तक हमारे समय की बचत कर आती है क्योंकि स्कूलों या पर कॉलेजों में हम अपने विषय के अनुसार पाठ्यपुस्तक के चयन करते हैं ताकि हमें जरूरत के सभी सामग्री प्राप्त हो सके जिससे हमारे समय की बचत होती है साथ ही शिक्षक भी कम समय में सिलेबस पूरा कर लेते हैं।

 

निष्कर्ष

उपर्युक्त कथनों से यह स्पष्ट होता है कि पाठ्य पुस्तक हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है अगर पाठ्यपुस्तक नहीं होती तो हमें सही तरीके से अध्यापक पढ़ा नहीं पाते साथ ही हम ज्ञानार्जन भी कम ही करते क्योंकि किसी के द्वारा बताए गए बातों को हम ज्यादा दिनों तक याद रख नहीं सकते पाठ्य पुस्तक हमें भूले हुए बातों को याद दिलाने में मदद करती है साथ ही हमारे ज्ञानार्जन या ज्ञान की ज्योति को भी बढ़ाती है। इसलिए पाठ्यपुस्तक की उपयोगिता हमारे जीवन में अति आवश्यक है।

 

1 thought on “पाठ्यपुस्तक की उपयोगिता (pathya pustak ki upyogita)”

  1. पढ़ने के प्रकार सस्वर पठन , गहन पठन , मौन पठन , विस्तृत पठन , शब्द और अर्थ का अनुमान लगाते हुए पढ़ना स्किप रीडिंग स्कैन रीडिंग आदि

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