स्रोत विधि के गुण और दोष (srot vidhi kya hai)


 स्रोत विधि क्या है स्रोत विधि का अर्थ

इतिहास अतीत की घटनाओं तथा तथ्यों का सत्यापित अध्ययन है अतीत में जो घटनाएं घटित हुई है और जो तथ्य रहे हैं उनका पता लगाना एक कठिन कार्य है क्योंकि जब ये घटनाएं तथा तथ्य घटित हुए तब हम जीवित नहीं थे। इसलिए इनका सही अध्ययन करने के लिए हम कुछ ऐसे अवशेष अभिलेख तथा अन्य ठोस प्रमाणों का सहारा लेकर सत्य की ओर अग्रसित होते हैं। वर्तमान में रहने वाला इतिहास कर इस बात की सही जानकारी कैसे करें की शताब्दियों पूर्व इस विश्व में क्या घटित हुआ था? इतिहास एक वैज्ञानिक विषय हैं। इसलिए अतीत की घटनाओं का वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करना उसका कर्तव्य है अतीत की घटनाओं की सत्यता की जांच उन प्रति को तथा चीनू के आधार पर करता है जो अतीत के द्वारा से छोड़े गए हैं इन चिन्हों तथा प्रतीकों को ही इतिहास में स्रोत कहते हैं।

श्री एस.बी.सी ऐथा श्रुत अतीत की घटनाओं द्वारा छूटे अवशेष हैं। मानव के इतिहास की वास्तविक रूप में घटित होती है किंतु वे दीर्घ काल तक अपनी वास्तविक स्वरूप में नहीं रह पाती हैं किंतु इन घटनाओं के द्वारा छोड़ें गये अवशेष चिन्ह ही इन्हें वास्तविकता प्रदान करते हैं इतिहास इन्हीं अवशेष चिन्हों पर कार्य करते हैं। और इन्हीं की सहायता से अतीत की घटनाओं को क्रमबद्ध ज्ञान प्रस्तुत करते हैं।

व्याख्यान विधि

स्रोत का वर्गीकरण

स्रोत को 3 वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

१. पुरातात्विक स्रोत

२. साहित्यिक स्रोत

३. मौखिक स्रोत

स्रोत विधि के गुण और दोष

स्रोत विधि के गुण

१. यह प्रीति इतिहास का व्यवहारिक तथा वास्तविक ज्ञान प्राप्त करती है।

२. यहां पर देती इतिहास शिक्षण के लिए उपयुक्त वातावरण निर्मित करती है।

३. यह पद्धति छात्रों को जिज्ञासा बढ़ाने तथा जिज्ञासा शांत करने के लिए उत्तम है।

४. यह पद्धति छात्रों की ज्ञान इंद्रियों का ज्ञान देती है वे विभिन्न वस्तुओं को या साक्ष्य को देखकर या छूकर तथा पढ़ाकर उसके संदर्भ में वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

५. यह पद्धति शिक्षण को रोचक तथा प्रभावी बनाती है।

६. यह पद्धति में छात्रों की सक्रियता बढ़ती है।

७. यह पद्धति छात्रों में आलोचनात्मक चिंतन का विकास करती हैं।

८. यह पद्धति शिक्षण की परंपरागत शिक्षण विधियों के दोषों को दूर करती है।

पाठ्यपुस्तक विधि

स्रोत विधि के दोष

१. यह पद्धति समय अधिक लेती हैं।

२. अध्यापक के लिए पर्याप्त स्रोतों की व्यवस्था करना कठिन है तथा खर्चीली भी। सभी विद्यालय स्रोत की व्यवस्था नहीं कर पाते हैं।

३. छात्र विभिन्न स्रोतों तथा घटनाओं में संबंध स्थापित करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं।

४. हर अध्यापक इस पद्धति का प्रयोग नहीं कर सकता है इस पद्धति का प्रयोग केवल निपुण अध्यापक ही कर सकते हैं।

५. छात्रों को भाषा संबंधी कठिनाइयां आ सकती है जिस समय की स्रोत है उस समय की भाषा आजकल की छात्राओं को समझ नहीं आती है।

६. यह पद्धति छोटी कक्षाओं में इतिहास पढ़ाने के लिए उपयुक्त नहीं है। इसका प्रयोग माध्यमिक कक्षाओं से आरंभ किया जा सकता है।

७. भारत जैसे देश में जहां संपूर्ण शिक्षा प्रणाली परीक्षा के केंद्रित है यह पद्धति अधिक अनुकूल नहीं है।

८. इस विधि के प्रयोग के लिए समय के अधिक आवश्यकता है जबकि विद्यालय की समय तालिका में इतिहास के लिए कम समय प्राप्त होता है यह विधि जटिल है।

कहानी कथन विधि या कथात्मक विधि

सुझाव

१. इस विधि का प्रयोग छोटी कक्षाओं में ना किया जाए।

२. उपलब्ध स्रोत की शिक्षक पहले ही अच्छी जानकारी कर ले।

३. इसका प्रयोग निपुण अध्यापक ही करें। इसके साथ अन्य पद्धतियों कस भी प्रयोग किया जाए।

४. स्रोत का प्रयोग बड़ी सावधानी से करना चाहिए इसके चयन में भी सावधानी रखनी चाहिए।

 

इतिहास शिक्षण में स्रोतों का प्रयोग

पाठ योजना के प्रारंभ में स्रोतों का प्रयोग

१. पाठ के प्रारंभ में छात्रों की जिज्ञासा को जागृत करने में शिक्षक स्रोतों का प्रयोग कर सकते हैं।

२. पाठ के मध्य में स्रोतों का प्रयोग

३. पाठ की समाप्ति पर स्रोतों का प्रयोग।

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